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पौ। छ १३ मोहरम                                                     लेखांक २०४.                                                    १७०३ मार्गशीर्ष शु॥ १२.
इसन्ने समानीन मया व अलफ                                           श्री.                                                              डिसेंबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री बाळाजीपंत दाजी स्वामींचे सेवेसीं:-
पो। गणेश नारायण सां। नमस्कार विनंति. उपरि येथील कुशल ता। मार्गशीर्ष आपण मु॥ पुणें जाणोन स्वकीय कुशल लेखन करीत असावें. विशेष. आपण कृपा करून पत्र पो। तें पावलें. आसामीविसी लि॥ त्यास, जे वेळेस सनदा लावल्या ते वेळेस तो सुभेदारांनीं मान्य केलें कीं, उत्तम आहे. अलिकडे तिकडून खंडोजी चिकणे आलेच नाहीं. आलियावर सविस्तर समजेल. उपरांत आपणांस तपशीलवार लिहून पाठवूं. राजश्री गोपाळपंत यांची मातुश्री बहिणाबाई व चिरंजीव नाना माहुलीस सुखरूप आहेत. कळावें. बहुत काय लिहिणें लोभ कीजे हे विनंति. राजश्री विनायकपंत सहस्त्रबुद्धे यांचे घरचीं पत्रें आलीं आहेत. तीं मागाहून जोडीबरोबर पाठवून देऊं. वरकड सविस्तर यजमान स्वामींचे पत्रावरून कळेल. हे विनंति, राजश्री गोपाळपंत स्वामींस सां। नमस्कार विनंति लि।। लोभ करावा. आपले घरची सर्व मंडळी सुखरूप आहेत. कळावें हे विनंति.

पो। छ ७ मोहरम                                                     लेखांक २०३.                                                    १७०३ मार्गशीर्ष शु॥ १२.
इसन्ने समानीन.                                                             श्री.                                                             २७ नोव्हेंबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री कृष्णराव स्वामींचे सेवेसीं:-
पो। गोविंदराव कृष्ण सां। नमस्कार विनंति. उपरि येथील जाणोन स्वकीय कुशल लिहित असावें. विशेषः-आपलीं पत्रें तीर्थरूप राजश्री रावसाहेबांस होतीं, व नवाब बहादूर यांची थैलीही होती, ते तीर्थरुपांनीं हैदराबादेस पाठविली. त्याचीं उत्तरें आपणांस व बहादरांस थैली ऐसी आली ते हाल्लीं पाठविलीं आहेत. त्यावरून कळेल. सारांश, तपशीलवार राजश्री नानांनीं तुह्मांस लिहिलें आहे त्यावरून कळेल. पाउण क्रोडीचें ओझें बहादुरास वाटलें असेल. त्यासः ओझें न वाटतां काय पैक्यांची तजवीज काय करतात ते लिहावें. केवळ बारानेंच परिणाम बंगाल्याचे मसलतीशीं कसा होतो, त्यास येविसींचा पर्याय नानांनीं लिहिल्याप्रों। बहादुर यांसीं बोलून लवकर लिहून पाठवावें. शिंद्याकडील वगैरे वर्तमान नानांनींच लिहिलें आहे. त्यावरून कळेल. तुह्मांस दोन तीन पत्रें पाठविलीं, उत्तर एकही आलें नाहीं. त्यास स्मरणपूर्वक पत्र पाठवावें. नानाही तुमचे पत्राची प्रतीक्षा बहुत करतात. पत्रें कसेही त-हेनें येत असावीं, युक्तीस ठीक पडल्यास. रा। छ १० जिल्हेज बहुत काय लिहिणें लोभ असों दीजे हे विनंति.

                                                                            लेखांक २०२.                                                    १७०३ मार्गशीर्ष शु॥ ३.
पो। छ १ माई                                                          श्रीशंकर प्रसन्न.                                                    १८ नोव्हेंबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री कृष्णरावतात्या स्वामींचे सेवेसीं:-
पोष्य गंगाधरराव भिकाजी साष्टांग नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल ता। छ ४ जिल्हेज मुकाम पुणें जाणोन स्वकीय कुशल लिहीत असलें पाहिजे. विशेष. आपण अश्वीनशुद्ध चतुर्थीचें पत्र पाठविलें, तें पावोन बहुत संतोष जाहला. नवाबबहादुर यांचें व इंग्रजाचे लढाईचा मजकूर व माहागाई .... .... ........ ....लिहिला तो कळों आला. ऐसेंच सदैव पत्र पाठवीत जावें. यानंतर आह्मी गुजराथेंतून पुणियास आलों. फौजेस नालबंदी देऊन रामतीर्थास गेलों होतों. त्यानंतर फौजसुद्धां येणियाविषयीं सरकारचीं पत्रें आलीं त्याजवरून फौज जमा करून फौजसुद्धां मुकाम मजकुरास आलों. यानंतर सरकारची आज्ञा होईल तिकडे जावयास येईल. वरकड सविस्तर मजकुराचीं पत्रें तीर्थस्वरूप राजश्री आणासाहेबांचीं येतच आहेत. त्याजवरून कळतच आहे. निरंतर पत्र पाठवून सानंदवित गेलें पाहिजे. सविस्तर मजकूर तीर्थस्वरूपाचे पत्रावरून कळेल. सदैव पत्र पाठवित जावें. बहुत काय लिहिणें कृपा लोभ करीत जावें हे विनंति.

पो। छ १५ जिल्काद                                                 लेखांक २०१.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
सन इसन्ने समानीन.                                                  श्रीभार्गवराम.                                                    ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

चिरंजीव राजश्री तात्या यांसीं प्रति चिंतामण दीक्षित व आबा दीक्षित आशिर्वाद उपरि येथील कुशल त।। आश्विन वा। १ जाणोन स्वकीय कुशल लेखन करीत असावें. विशेष. तुह्मी येथून गेलि(या) ता। तीन चार पत्रें व हल्ली शिवकंचीचें मुकामचें ऐसीं पाठविलीं, तीं पोहोंचून संतोष जाहला. मार्गीं महदरिष्टाचा उपद्रव जाहल्याचीं पत्रे आलीं; त्यावरून चिंता प्राप्त आज ता। जाहली होती. ते हल्लींच्या पत्रावरून निवारण जाहली. आह्मी दोन तीन पत्रें पाठविलीं तीं पोंहचलीं किंवा नाहीं हें न कळे. सांप्रत इकडील विशेष ल्याहावें ऐसें नाहीं. वाडियांतील व सर्व सुखरूप आहेत. वरकड मजकूर राजश्री गणेशफ्तं यांनीं लि॥ आहे यावरून कळेल. इकडील कोणे गोष्टीविषयीं चिंता न करावी. तिकडील मसलतीचा अर्थ सिद्धतेंत आणोन, नवाबबहादुर यांची मर्जी रक्षून, दोहींकडील मसलतीचा बंदोबस्त करून श्रीचे उत्साहास जरूर यावें. मागती नवाबाचे मर्जीनरूप जाणें तरी जावें. नवाब फार मेहरबानी करितात ह्मणोन लिहिले, त्यास आपणही त्यांचे ठिकाणीं एक लक्षानेंच चालतां; त्यापक्षीं ते मेहरबानी करितील. तेही सर्व परीक्षक आहेत. आपण त्यांची मर्जी रक्षून यावें. नित्य अहोरात्र श्रीची प्रार्थना करीत आहों. श्री सर्व मनोदयानुरूप घडवील. चिंता किमपि करूं नये. युद्धप्रसंगास सावधगिरी तुमची असावी. किती ल्याहावें. सर्वांचे नेत्राचें लक्ष तुह्मांजवळ आहे. बहुत काय लिहिणें लोभ करावा हे विनंति.

राजश्री विनायकपंत व बाळाजी व गोपाळपंत यांसी नमस्कार.

लोभ कीजे. तुह्मीं चिरंजिवासमागमें आहां. युद्धप्रसंगास रात्रंदिवस जपत जावें. आळस नसावें. विशेष काय ल्याहावें, तुह्मी सुज्ञच आहां हे विनंति.

वे॥ राजश्री बाजी भटजी यांसी नमस्कार विनंति उपरि श्रीदेवाचे पुजेस व अनुष्ठानास फार जपोन असावें. त्यांत सर्व यश आहे हे विनंति.

पो। छ १५ जिल्काद सन                                        लेखांक २००.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
इसन्ने समानीन मया व अलफ.                                     श्री.                                                             ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

चिरंजीव राजश्री तात्या यांसीं प्रति सगुणाबाई आशिर्वाद उपरि येथील कुशल ता। आश्विन वा। १ जाणोन स्वकीय कुशललेखन करीत असावें. विशेष. तुह्मांकडील पत्र श्रीशिवकांचीचें मुकामाचें आलें तें पोंहचून संतोष जाहला. ऐसेंच निरंतर पत्रीं संतोषवित असावें. पत्री लि॥ कीं, शरीरास जपोन औषध घेऊन प्रकृतीस जपत जावें. उपास फारसे करूं नयेत. त्यापों।च जपत आहों. वरकड संवसाराचा बंदोबस्त सांगितल्याप्रों। करून आहोरात्र जपतच आहों. सर्वांस बुद्धिवाद सांगून सर्वांचा सांभाळ वडिलपणें करितों. भेटीनंतर समजण्यांत येईल. इकडील काळजी तिळप्राय करूं नये. तिकडील मसलतीची कार्यसिद्धी करून उत्साहाचें सुमारें यावयाचें करावें. बहुत काय लिहिणें. लोभ कीजे हे आशिर्वाद.

चिरंजीव बाळाजीपंत व गोपाळपंत यासी आशिर्वाद. उपरि बहुत सावधपणें वर्तणूक करीत जाणें हे आशिर्वाद.

पो। छ १५ जिल्काद                                               लेखांक १९९.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
सन इसन्ने समानीन.                                                 श्रीशंकर.                                                          ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

सेवेसी गणेश नारायण सां। नमस्कार विनंति येथील वर्तमान ता। अश्विन व॥ १ मु॥ रुषिग्राम यथास्थित असे. विशेषः- आपणांकडील पत्रें श्रीशिवकांचीचे मुकामचीं व पहिलीं दोन तीन आलीं, तीं पोंहचून आनंद जाहला. मजकडून त्या पत्राचीं उत्तरें, एक राजश्री यशवंतराव यांचे माणसासमागमें व एक भवानजी चिकणे व एक राणोजी जासूद एकूण तीन पत्रें तपशीलवार पाठविलीं तीं पोंहचलींच नाहीं. त्यावरून सेवेसीं अंतर पडलें. याउपरि पत्रें पाठविणें तीं राजश्री गोविंदभट तात्या यांजकडे पाठवीत जाईन. ह्मणजे सेवेसीं पोंहचतील. इकडील मजकूर तरी, वर्णीविसीं आज्ञा होती त्याप्रों।च चालत आहे. राजश्री कृष्णाजीपंत ढेकणे यांजकडील पूजाबाबत जाबसाल उगवून घेतला. जमाखर्च झाडून होत आले, एकसालचे व किरकोळ राहिले आहेत, तेही आठचार रोजांत होतील. मला घरास जावयासी बनलें नाहीं. सर्व कामाचा बंदोबस्त करून कार्तिकमासीं जाईन. मामलती बाबत दुसाला हिसेब करून घेतले. मौजे उले पा। सोलापूर हा गांव साल गु॥ बद्दल दु॥ देऊन सनदा दिल्या, त्या सुभेदारास लाविल्या.

त्याणीं न मानिल्या ह्मणोन मागतीं सरकारचीं ताकीद पत्रें व श्रीमंत यजमान स्वामींचें खासगत पत्र पाठविलें तेंही मानिलें नाहीं. उत्तर केलें कीं, सरकारांत आमचा करार आहे कीं, गांव कोणांस द्यावयाचा नाहीं. सनद आली तरी गांव देंऊ नये ऐसीच श्रीमंतांची आज्ञा आहे. त्यावरून मागतीं चिरंजीव राघोबास पत्र लिहून गोविंदभट तात्यांस लिहून पाठविलें, तेथून उत्तरच न होय. मग जासूद उठोन आला. एक दोन रोजां मीच जाऊन बंदोबस्त जाहल्यास करून घेतों. तो कामाकाजाविसीं मुख्यास वेदमूर्तीस निक्षून लिहिलें पाहिजे. निंबाळकरांकडील वरातेचाही ऐवज येत नाहीं. असो. येक वेळ जाऊन पाहतों. काम जाहल्यास करून घेतों. सर्व मजकूर आपले लि॥ वर आहे. राणोजी जासूद याजबराबर खासे कागदांचा दस्ता एक व तपकील बेलें भरून पाठविलें तें पोंहचलेंच असेल. तेथील मसलतीचा गुंता उरकून श्रीशिवरात्रीचे उच्छाहास येणें जरूर जाहलें पाहिजे. तेथील युद्धाचा प्रसंग आहे. सावधगिरी ध्यानांत आहेच. आपले सैन्यांत मरीचा उपद्रव जाहल्याचीं पत्रें आलीं. त्यांतच हीं पत्रें येत, तो कोणाची चित्तवृत्ति ठिकाणीं नवती. काल पत्रें आलिया पा। सर्वांस आनंद जाहला. सदैव पत्रीं सांभाळ जाहला पाहिजे. इकडील सर्व बंदोबस्त आज्ञेप्रों। आज तागाईत आहे. राजश्री आपांस सांगितल्याप्रमाणें पावतें केलें. मजकडील गु॥ बाबत रकमेचा जमाखर्च आज्ञेप्रमाणें करितों. येथील सरकारी अधिकारी आहेत यांसीं पत्रें येत जावीं व सुभेदार यांसही ल्याहावें. ते वारंवार स्मरण करीत असतात. श्री विंध्यवासिनी देवीचा पाटाऊ व चोली व दक्षणा चिंतामण दीक्षित चितळे यांचे पुत्रांबराबर रवाना करून दिल्हे. साल गु॥ बाग घेतला त्यांत चारशें केळीं व कांहीं फुलझाडें व हजार बाराशें तुळसी, येणें प्रमाणें तूर्त करविलीं आहेत. सारांश, तेथील मसलतीचा ठराव होऊन नवाब बहादूर यांची आज्ञा घेऊन लवकर येणें होय तें जाहलें पाहिजे. येण्याचे सुमारें आगोदर सूचना यावी ह्मणजे सरंजाम करून ठेवावयाचा तो करून ठेवीन. बहुत दिवस राहण्याचें न करावें. सेवेसीं श्रुत होय हे विज्ञापना.

राजश्री बाळाजीपंत दाजी व गोपाळपंत दाजी व बाजीभटजी गुरुजी स्वामींचे सेवेसीं सां। नमस्कार विनंति लोभ करावा. आपले घरींचीं सर्व सुखरूप आहेत व वो। राजश्री रामभटजी बापट यांचेही घरींची सर्व सुखरूप आहेत. कळावें लोभ करावा हे विनंति.

सेवेसीं धोंडोराम कृतानेक सां। नमस्कार विज्ञापना ऐसिजे. आज्ञेप्रमाणें वर्तणूक होत आहे, निवेदन होणें हे विज्ञापना.

पो। छ १५ जिल्काद                                               लेखांक १९८.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
इसन्ने समानीन.                                                  श्रीशाकंभरी प्रसन्न.                                                  ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री कृष्णराव तात्या स्वामींचे सेवेसीं:-
पोष्य बापुजी संकराजी कृतानेक सां। नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल तागाईत आश्विन वा। १ पावेतों सुखरूप असों. यानंतर तीर्थस्वरूप यांस आषाढ वा। ८ स देवआज्ञा जाहली. ईश्वरानें मोठें वाईट केलें. बरें. ईश्वरसत्ता. प्रा। आमचा विचार फार पेचांत आहों. त्या प्रा। एक दोन आमचीं कुळें आहेत, त्यांजविषयीं येथें आपणांस विनंति केलीच आहे. आपणही मान्य केलें आहे. तरी कृपा करून त्यांजकडील ऐवजाचा फडशा करून घ्यावा. म्यां वारंवार विनंति ल्याहाविसी नाहीं. स्मरण धरून कार्य करून घ्यावें. सर्व भरंवसा आपला आहे. सदैव पत्रीं संतोषवित असावें. बहुत काय लिहिणें कृपालोभ करावा हे विनंति.

रो। बाळाजीपंत व गोपाळपंत स्वामींस नमस्कार. रो। तात्यांस लि॥ आहे, त्याजवरून सर्व वर्तमान कळेल. त्याप्रों। निर्गत होय, ऐसी गोष्ट करावी हे विनंति. उपरि लि।। लोभ करावा हे विनंति.

पै॥ छ १५ जिल्काद                                               लेखांक १९७.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
सन इसन्ने समानीन.                                                    श्री.                                                           ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री विनायकपंत दाजी स्वामींचे सेवेसीं-
पो। गणेश नारायण सां। नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल त।। छ १४ सवाल जाणोन स्वकीय कुशल लेखन करीत असावें. विशेषः- आपण बहुतां दिवसीं कृपा करून पत्र पा। तें पावलें. लाखोटा पाठविला आहे, हा घरीं बुरबाडास पावता करून जाब आणोन पा। ह्मणून लिहिलें, त्यास लाखोटाच आला नाहीं. पहिला एक लाखोटा आला, तो चिपोळणास भागवतांचे घरीं पावता केला. आपणांस कळावें. सदैव पत्रीं संतोषवित असावें. आपले घरचीं सर्व सुखरूप आहेत. बहुत काय लिहिणें लोभ करावा हे विनंति. बाली लाखोटा आला तो कोकणांत पा। आहे. उत्तर आलें ह्मणजे मागाहून लिहून पाठवूं हे विनंति. पो। आपाजी रघुनाथ सां। नमस्कार विनंति उपरि लि।। लोभ करावा हे विनंति.

पो॥ छ १५ जिल्काद                                               लेखांक १९६.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
सन इसन्ने समानीन.                                                    श्री.                                                           ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

चिरंजीव राजश्री तात्या यांसी प्रति विश्वनाथ कृष्ण जोशी आशिर्वाद उपरि येथील कुशल ता। आश्विन व॥ १ सौम्यवारपर्यंत यथास्थित असे. विशेष. पेशजी तुमचें पत्र चे मुकामीहून आलें होतें, त्यांत जरीमरीचा उपद्रव बहुत जाहला आहे ह्मणोन संकटविषयाचें आथ लि॥ त्यावरून चिंता प्राप्त जाहली होती. सांप्रत भाद्रपद शु॥ सप्तमीचें पत्र श्रीशिवकांची येथील मुकामचें आलें. जरीमरीचा उपद्रव श्रीवेंकटेशाचे कृपेंकरून क्षेम आलें; परंतु मनुष्यांत कांहीं अवसान राहिलें नाहीं. नवाब साहेब यांच्या भेटी श्रावण व॥ द्वादशीस जाल्या. ममतायुक्त भाषण जाहलें. ह्मणोन विस्तारें पत्रीं लिहिलें. त्यावरून परम संतोष जाहला. ऐसेंच निरंतर पत्रीं आपलेकडील कुशलवृत्त सविस्तर लेहून पाठवणें, तेणेंकरून समाधान होईल. आह्मांकडील वर्तमान तरी तुह्मीं केल्यान्वयें यथास्थित असे. अधिकोत्तर नाहीं. तेरखेचे अधिकारी व गकारनामकांनीं काय काय केलें हें विस्तारें ल्याहावें ह्मणोन लि॥, त्यास, तेरखेचे अधिकारी या स्थळास आले. गकारनामक हुजूर राहिले. याप्रमाणें वर्तमान आहे. वरकड राजश्री गणेशपंत यांणीं लिहिल्यावरून सर्व कळेल. तुह्मी तेथील कामकाज करून माघारे येण्याचा विचार करून लवकरच येणें होय तें करणें. बहुत काय लिहीणें हे आशिर्वाद.

राजश्री बाळाजीपंत व गोपाळपंत यांसीं नमस्कार. सेवेसीं सदाशिव नारायण सां। नमस्कार. विनंति लि॥ परिसोन निरंतर पत्रीं परामर्ष जाहला पाहिजे. सेवेसीं श्रुत होय हे विज्ञापना.

पो॥ १५ जिल्काद सन                                                 लेखांक १९५.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
सन इसन्ने समानीन.                                                      श्रीशंकर.                                                           ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

चिरंजीव राजश्री तात्या यांसी प्रति विश्वनाथ कृष्ण जोशी आशिर्वाद उपरि येथील कुशल ता। आश्विन व॥ १ सौम्यवारपर्यंत यथास्थित असे. विशेष. पेशजी तुमचें पत्र चे मुकामीहून आलें होतें, त्यांत जरीमरीचा उपद्रव बहुत जाहला आहे ह्मणोन संकटविषयाचें आथ लि॥ त्यावरून चिंता प्राप्त जाहली होती. सांप्रत भाद्रपद शु॥ सप्तमीचें पत्र श्रीशिवकांची येथील मुकामचें आलें. जरीमरीचा उपद्रव श्रीवेंकटेशाचे कृपेंकरून क्षेम आलें; परंतु मनुष्यांत कांहीं अवसान राहिलें नाहीं. नवाब साहेब यांच्या भेटी श्रावण व॥ द्वादशीस जाल्या. ममतायुक्त भाषण जाहलें. ह्मणोन विस्तारें पत्रीं लिहिलें. त्यावरून परम संतोष जाहला. ऐसेंच निरंतर पत्रीं आपलेकडील कुशलवृत्त सविस्तर लेहून पाठवणें, तेणेंकरून समाधान होईल. आह्मांकडील वर्तमान तरी तुह्मीं केल्यान्वयें यथास्थित असे. अधिकोत्तर नाहीं. तेरखेचे अधिकारी व गकारनामकांनीं काय काय केलें हें विस्तारें ल्याहावें ह्मणोन लि॥, त्यास, तेरखेचे अधिकारी या स्थळास आले. गकारनामक हुजूर राहिले. याप्रमाणें वर्तमान आहे. वरकड राजश्री गणेशपंत यांणीं लिहिल्यावरून सर्व कळेल. तुह्मी तेथील कामकाज करून माघारे येण्याचा विचार करून लवकरच येणें होय तें करणें. बहुत काय लिहीणें हे आशिर्वाद.

राजश्री बाळाजीपंत व गोपाळपंत यांसीं नमस्कार. सेवेसीं सदाशिव नारायण सां। नमस्कार. विनंति लि॥ परिसोन निरंतर पत्रीं परामर्ष जाहला पाहिजे. सेवेसीं श्रुत होय हे विज्ञापना.