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अक्षी - पाटील

लेखांक २६९                                                                                                                                                      १५५३ पौष वद्य ५                                

                                                                        

                         269

2 1
अजरख्तखाने खुदायवंद खाने खुदायवंदखाने अजम सैफखान खुलीदयामदौलतहू बजानेबु कारकुनानी हाल व इस्तकबाल व देसमुखानि मामले मूर्तजाबाद बिदानंद सु॥ इसन्ने सलासीन अलफ मुतालिकानि हुसेन बिन काजी महमद बेनफी मालूम केले जे - मशारनिलेस रोजमुरा दरोज लारी २ बफर्मान बसिके खास आहे यासि तनखा मो। मा। गौडी तपे झीराडी व वढरहू तपे बह्मणगौ प्रांतवार या तसुरफाती ता। हालकू चालले आहे हाली साहेबास मुकासा अर्जानी जाला आहे माहाली कारकून ताजया खुर्दखताचा उजूर करताती व देहाय मजकुरीहून महसूल व पटीआ उचापती केली आहे फीराउनु मुबदला आणिके जागाहून देविले पाहिजे पेस्तर सदरहू तनखा उचापती न करणे ह्मणोउनु मर्‍हामती केले पाहिजे तरी काजी हुसेून बिन काजी महमद बेनफी यासि रोजमुरा दरोज लारी २305 तनखा मौजे नांदगाऊ तपे झीराडी व मौजे वढरहू तपे बह्मगणौ बफर्मान दोसाले सन सलासहून तालीक लेहोन त्या प्रमाणे माहालेस आदा करीत जाणे सदरर्हू तनखापैकी उचापती केली असेल ते ठाणाहून मुबदला आणके जागेपैकी दीजे पेस्तर याचे तनखा उचापती न कीजे तालीक घेउनु असल फिराउनु दिजे मोर्तब

                                                                                                                               269 1

तेरीख १८                                                                                             रुजू सूरू निविस
जमादिलाखर                                                                                       माहे जमादिलाखर



लेखाक २१६
१६६१ वैशाखवा। ५

श्रीसुबराज
नकल
राजश्री मलेगिरी हयग्रीव हेजीब व दादाजी अणाजी हवालदार वर्तमान भावी प्रा। हरपनहल्ली गोसावियासि
स्नो। हिदूराउ घोरपडे ममलकतमदार दडवत सु॥ तिसा सलासीन मया अलफ वेदमूर्ति राजश्री नारायणभट बिन वीरेश्वरभट देवरातगोत्र आश्वलायनसूत्र वास्तव्य कराड यासी श्री कृष्णेचे अभिषेक सागोन प्रातमजकूरच्या नेहमी तहाच्या येवजपैकी होन ५ पाच रास प्रतिवर्षी करार करून दिल्हे असत तर तुह्मी नवीन पत्राची अपेक्ष्या न करिता सदरहू पाच होन साल दरसाल बिला उजूर पावते करीत जाणे या पत्राची तालिक लेहून हे पत्र भोगवटियासी परतून देणे जाणिजे छ २० सफर शके १६६१ सिधार्थीनामसवत्सरे वैशाखवदि ५ मी पा । हुजूर

लेखांक २१५
१६५७ माघवा। ४

श्री
यादी जा लक्षुमी गावजत्रा का। कराड सु।। सीत सलासीन मया व अलफ छ १६ रमजान माघमास वद्य पक्षी चतुर्थी मगलवार तदिनी जाली जत्रा ऐसि जे
लक्षुमी मातीची व तळीले अळीचे                 १ मागाची घागर माघे
                                                                      -------
कुभार त्याचे घरी करावी कलम १                २
लागण कलमे बि॥                                गावा सभोवते फिरवावे
१ ईरड घोलविते गावाभोवते फिरवावे       १ रेडा भडार व माळ घालून गा
२ सुमारी                                            वा भोवते फिरवावे
१ महाराची घागर पुढे                             ------
                                                          ४
ईरडे पुढे व घागरी व रेडा मागे पान माहारानी मागानी मिळोन गावा सभोवते फिरवून आणावी वर्तावे कलम १
कलम १ लक्षुमी पुढे रेडा आणून ते समई सुताराचे घरी गाडा व राहाट साल माहरानी थोडा गला सोडवावा
करऊन घेऊन कुभाराचे घरास उरला मागानी सोडवावा कलम १ वाजतगाजत जावे लक्षुमीस गाडिया तीन दिवस माडवात पूजा करावी वरी बैसऊन वाजत हणमता माघे गावचे लहान थोर याणी नैवेद्य माडव असतो तेथे घेऊन जावी नेहावे कलम १ माडवात बैसवून राहाट साल जवळ सवासिणी माहारा च्यार ४ व मागाची ठेवावे कलम १ १ एणे प्रमाणे कलम १ लक्ष्मी माडवात सर्वत्रानी नेऊन लक्षुमी पुढील रेडियाचे डोचके वरील बैसवावी लागते तेथील पूजा कुभार दीव आनऊन पाटीलकुलकर्णी याचे करतो जें येईल ते कुभार गुरव व सेताचे बादास पुरावी कलम १
गावकर घेतात कलम १ चौथे दिवशी सिवे वरी लक्षुमी रेडा अलिया वरी माहाराची पूजा नेऊन सोडावी माडवास आगत्याणी करावी जे येईल नैवेद विडे लावावी कलम १

लेखाक २१४
१६३८- ४०

श्रीआईआदिपुरुष
वेदशास्त्रसंपन्न राजमान्य राजश्री नारायणभट गिजरे
स्वामी गोसावी यासी

विद्यार्थी कृष्णाजी परशराम प्रतिनिध कृतानेक सा। नमस्कार विनति उपरी तुह्मी समस्ताचे पत्र पाठविले ते पावले अभिप्राव कळो आला ऐसीयास तुह्मी असता हरभट यास चिता काय आहे तरी स्वामी सर्वशक्ती वेचून हरभट कडेसी पडीत ते गोष्ट केलियाने आह्मास सतोष आहे वेदमूर्तिचा व आमचा वियोग न होय ते गोष्ट केली पाहिजे वेदमूर्ती वर सकट आले आहे तेणे करून आह्मास श्रम होतात तरी स्वामीनी आह्मा वरी दया करून हरभटा वरला शब्द चुकून तुह्मी सहवर्तमान हरभट असे उभयता आमचे भेटीस येणे अनमान कराल तरी आमची शफत असे बहुत काय लिहिणे लोभ असो दीजे हे विनंति क्षेत्राचा महिमा राही ती गोष्ट केली पाहिजे हे विनंति

लेखाक २१३
१६३८ ते ४० बाळबोध

श्री आई
वेदशास्त्रसपन्न राजश्री नारायणभट्टजी गिजरे वास्तव्य कराड गोसावियासि

विद्यार्थी कृष्णाजी परशुराम प्रतिनिधि साष्टाग नमस्कार विज्ञप्ती उपेरी येथील कुशल जाणऊन स्वकीय लेखन करणे विशेष वेदमूर्ति हरीपाठक येळगावकर हे ब्राह्मण पुरातन अमचे आश्रीत आहेत यैसे तुह्मास ठावके च आहे आजि पन्नास वर्षे कराडी राहात आहेत याचा योगक्षेम चालावयास आह्मी व चिरजीव रायानी यास येणपे दिले आजी परियत राजश्री कृष्णाजीपती ही चालविले परतु आता त्यानी खेडे वरी हरयेक गोष्टीचा अतिशय करितात ह्मणून वेदमूर्ति कुटुब घेऊन आह्मा कडे येतात तरि तुह्मी या वर पूर्ण दया करीत असता यानी यावेसे काय आहे तुमची कृष्णाजीपताची मैत्री आहे त्यास पष्ट च्यार गोष्टी सागून वेदमूर्तीस क्षेत्र न सुटे ते गोष्टी केले पाहिजे तुह्मी अनुमान कराल तरी तुह्मास अमची आण असे विशेष तीर्थरूपाचा पक्ष त्रयोदशीस आहे आपण आलियाने आह्मास परम सतोष होईल बहुत काय लिहिणे लोभ असो देणे येक वेळ भेटीस येणे हे विज्ञापना

लेखाक २१२
१६३८ - ४० बाळबोध

श्रीमुद्गल
स्वस्ति श्री वेदशास्त्रसपन्न राजमान्य राजश्री नारायण दीक्षित या प्रति रावजी उपाध्ये साष्टाग नमस्कार विनति उपरी येथील क्षेम जाणून अपले क्षेम लिहीत गेले पाहिजे विशेष राजश्री चिरजीव गोपालभट्ट पडितराव यानी क्षेत्रस्थास पत्र लिहिले आहे ते पत्र आपण अवलोकन करून याचा शास्त्रार्थ मनास आणून विधि लिहून ग्रथाचीं वाक्ये लिहाल त्या ग्रंथाची नावे लिहून अतोबा पाठविला आहे तरी त्या बरोबर पाठवून देणे सुज्ञा प्रति विशेष काय लिहिणे विज्ञापनेय

लेखाक २११
१६२९ ते १६४८

श्री

वेदमूर्ति राजश्री समस्त ब्राह्मण क्षेत्रकराड स्वामीचे सेवेसी विद्यार्थी कृष्णाजी विठल साष्टाग नमस्कार विनति उपरि मौजे सैदापूर पा। कराड हा गाऊ राजश्री छत्रपति स्वामीनी इनाम दुतर्फा जलतरुपाषाणनिधिनिक्षेप कुलबाब कुलकानू दिल्हा आहे एैसीयास सालमजकुरी पर्जन्याचे अवर्शण पडिले या स्तव राजश्री पतप्रतिनिधिस्वामीनी पर्जन्यसूक्ताचे अनुष्ठान करवणे ह्यणून आज्ञा केली त्याज वरून समस्त ब्राह्मणास विनति केली की पर्ज्यन्यसूक्तअनुष्टान करावे ती समधे तुह्मी मौजेमजकुरास वेठी बेगारी राहदारीचा उपद्रव लागतो तो निवारण करावा ह्मणून आज्ञा केली ते कबूल केली स्वामीनी अनुष्टान आरभ केला श्री चे दयेने पर्जन्य बहुत समाधान जाले मौजे मजकुरास वेठी बेगारी राहदारी कुल मना केली असे कोणी उपद्रव करणार नाहीत राहदारीचे वोझे अगर वेठीबेगारी येकदर मना केली असे कोणास राहदारीमाणूस व वेठीबेगारी न देणे जे येतील ते पुढील गावी जातील तुह्मास उपद्रव नाही छ २४ रमजान सु। इसन्ने अशरीन मया व अलफ
लेख नावधि

लेखाक २१०
१६१८ ते १६२६ बाळबोध

श्री
राजश्री वीरेश्वरभट तथा नारायणभट गिजरे या प्रति स्नो। श्रीकराचार्ये नमस्कार येथील कुशल जाणुन स्वकीय लिहिणे या उपरि रा। मोरेश्वरभटानी तुह्मास अतर दिल्हे हे ऐकोन बहूत श्रमी झालो मोरेश्वरभट ह्मणजे अमचे स्वकीय त्या स्थळी होते ईश्वराने परम कठीणता केली बरे होणारास यत्न नाही तुह्मी ही साक्षर भले आहा ईश्वर दया करील चिता न करणे लोभ असो देणे हे नमस्कार

लेखांक २६८                                                                                                                                                      १५९६ ज्येष्ट वद्य २                                

                                                                        

                                                                                                              72

अज रख्तखाने सुदायवंद सुजाअत व सफाअत दस्तगाह सेख अजम लस्किरी मिया सेख मुस्तफ मुजेदी साहेब दामदौलतहू ता। देसमुखानि पा। मंगळवेढा बिदानंद की हर्ची सुहुरसन खमस सबैन व अलफ तुह्माकरिता नागणीयाने दावा करून विलायती खराब केले त्यास किती मदत करावे तितुके केले त्याकरिता भले भले लस्किरी ठार जाहाले दोनी सेहे घोडे व इसम पा। मा। मधे मोकाम ठेविले आहे तुह्मी मा। मा। विलायती रयत बहुत वजा दिलासा करून संचणी घेऊन कीर्दी मामूरी होए ऐसे कीजे यावरून तुमचे सरफराजी असे तुह्मी पहिलेपासून दिवाणचे दौलतखाह असा आता नागणियाचे दावाकरिता रयत रजीस जाहले असेलीया त्यासी बहुत वजा दिलासा करून कीर्दी मामूरी करवणे यावरून कुली तुमचे मुजरा होईल

                                                                                         5 2

रुजू सरखेल
तेरीख १९ माहे रबिलोवल

लेखाक २०९
१५४३ माघवद्य ७
बाळबोध

श्री
नकल
क्षेत्रपाळायनम
स्वस्ति श्रीमत्कराहाटकक्षेत्रस्थ ब्रह्मवृद समस्त मिळोन समापत्र केले जे ज्या पुरातन दडक जो चालत होता तो टाकून नवीन दडक करू लागला ह्मणऊन समस्ती मान्य करून नेम केला जो पुरातन त्याचे आद्य जे चालिले असेल त्यास अधीक करू लागला तरि समस्ती मिळोन निवारावे यास चुकल जो तो गोताचा अन्यायी हेच प्रमाण पाथरेकर यानी समस्त ब्राह्मणाचा विद्यमाने लेहून दिल्ही ऐसे जे नारायणभट्ट व नरहरीभट गिजरे व पोश भट्ट ढवळीकर वअमणभट्ट क्षीरसागर या चौघा मध्ये व अपणामध्ये प्रायश्चित्ता सबधे बोली पडली अपण बोलीलो की तुह्मी चौघे पुढे होता का हे काय अहे ऐसे बोलीलो कलह जाहला त्यास समस्त ब्राह्मण बोलिले की हे चौघे समस्ताचे मुतालीक या चौघाचा अनुमत्ते समस्तानी वर्तावे शभरास बोलावयास गरज नाही त्याजवर अपण स्वस्ताक्षर लेहून दिल्हे असे यास जो कोणी अन्यथा करील तो ब्राह्मण निराळा
१ या लेखाकापासून क्षेत्रमाहात्म्यसबधी पत्रास सुरुवात झाली आहे

नरहरीभट्ट गिजरे पत्रा प्रमाणे पत्राप्रमाणे सकभट्ट, ढवलीकर