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(१५)
आयो यक पुनि गयंद कवि साहे चढायो घोर ।
गैंद चढयो सुनि घोरपर पत्यो सहरमों सोर ॥
पुनि आयो यक सुधार कवि नाच कहायो जैन ।
मागत घोरे अकके सो झेर करी नृप दैन ॥

सो जथा।
देत हो दान निसान बजायके दान हि केंनु मेरु ढहा है ।
तेरे इ दान जहान जियो यह दान हि कें जलसिंधु बहा है ॥
भालके लाल न्यहाल किये गुनि दे दर हाल जिन्हें जो चहा है ।
बालन लायि है वारन दे तव याहिके वार जुवार कहा है ॥३१॥

(१६)
ता पर थोरे यि वैस वैस को थाट द्वारकादास ।
वाहि दयो नृप सहज हि ऐसो घोरो खास ॥

सो जथा ।
एक खुरी तें फिरे पुरि सात भरक्कत नेक परक्कत पाती ।
वागके लेत ले पौनकि पागजु छ्रवत नाहि मनोछिति ताती ॥
लोक कहे रविके रथकों मनों आन दयो उन्ह सात को साती ॥३२॥

(१७)
एक समें द्विज सहलसो टहल फिरावे रात ।
वोट वाधके हूं न की देस आपनी जात ॥
बेदु नही गुनवाद नही बकवादउ नही सवे विधिउनें ।
ऐसेउ कैसेउ पालतु है गुनसों पुनि इनें ॥
कौ लोंकहू जिन्हकों भयो पूरन एक दुसालउ पोट कहुं नें ।
साहेब साहजु साह जवाहें तों देत दुसाल आपोढकहूनें ॥३३॥