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(८)
विविध समस्या सुनत तब साहे भये संतुष्ट ॥
भाषा संस्कृत सब कवि तांहां वा कवि पर भये रुष्ट ॥
दुसरे दिन कबितिलक तहां तवको पाछे थापी ॥
आगे बैठ्यो जाय कहिं कालिदास हों आपी ॥
अधिकाई यह जनिके कूर कविनको काम ॥
नृपति साहेको देखि मुखयौं कहि कवि जयराम ॥
आजहि यो मेहमनि हो बैठा आंगुज्याये ॥
कालिदास तुम होहगे हम हु जानत आहे ॥
दुसरे दिन सब कबिनि मिले एसो कियो विचार ॥
बैठककी खलबल करें सो कवि देख्यो दिन च्यार ॥
ता पर कबि यह कवितकी पढि गहिं दियो नृपढाव ॥
तब तें कवि जयराम भय प्रसिध्द दस दिज नाव ॥

यथा ।

जेति मही महाराज गही तुम खग जोर और देश देखे जेते सायरके धरा में ।
तेति तेति भाखा सीखि डारि दयि दूर भीखि आश्रित सो आय रखो साहे तेरे डेरा में ।
भट पावे तीन स भाट पावे सात स अवरज देखता हुं आजलग मेरा में ॥
भट कहे भाटनमे भाट कहे भटनमें एसो भयो जयराम तीन मन रामे ॥८॥

(९)
एक दिन नरपती साहे कहिं गंग हि सो होत ।
तो बरनत एसो कछु जैस कपोतके पोत ॥

जथा।

चंड कुवंड गहे नृप साहेब कानलो तानि हने अरिके गन ।
वीरु गिरे जिरहे पहिरे जहरे कि मनोलहरे सो नरे रन ॥
पैठ गये सर बख्तरमों फरफोंरिके वाहेर यौव निकरे तन ॥
कानि पुरात्न डारि भुवंगन बाहेर आवन काटे मनोफन ॥९॥