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राधामाधवविलासचंपू (शहाजी महाराज चरित्र)
(२१)
वीस सहस्र असुवार बर मीरजुमिलाके संग ।
जंग करत रनरंगमो उन्हयो पायो भंग ॥
सो जथा ।
जो बरडे उभराड चढे पुनि याकों न ने कलयो किन्ह आगौ ।
सो न लडो न अडो न खडो विडो ऐसो बिडो चढि जातु है भागौ ॥
तौ हि लों जुंबुक कचु सो गाजत जौ लौं नहि सरजा अरि जागो ।
लोक लख्यो बढयो दूम शाह कहे हातुमलाके पिछो जम लागो ॥३७॥
मिरका मेहरि कहे मे हरसों गुतिकोट तजे अरु भाज उठाउठ ।
उमडयो दल साहमहीपतिको पह् सूझत नाहिं धों आखे गयी फूट ।
भभरायि कहें अब आजु कहींयो जहां को तहां अब ले गांह मैं लूट ।
जुमला करु दे जुमलाकरिके परिके अरु पापन गाय कहें छूट ॥३८॥
वे पीर मीर फकीर भयो बजिकीर करें परु जाय मसींदे ।
मेरि कहा अब देरि कहो रहुवारि भये कहुं काटि कसीदे ॥
वैरिके अब खैर नहिं यह मैर मातिव साहे रसीदे ।
भागनको जुमला अब पागको पेचकसे जनि पेशकसी दे ॥३९॥
॥ घनछरी ॥
जेत जेती मेहरसो मेहरिने बाते करी तामे मीरजु लाने बात एको न
करी।
बाको फलु लाजत भाजत भिजाजतु है कहताहै जयराम भई जोर फकरी॥
दू चढयो बादलसोदल लीये शाह बली जान कहा पावतु है टाफसियो
मकरी ।
सकरी बन गलिंगलींज करीं है जहां तहां पकरे गो कदर्थज बाध मनों
बकरी ॥४०॥