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राधामाधवविलासचंपू (शहाजी महाराज चरित्र)
संध्यजे राग वसंधर सों यो सुधारत काम कमान कमंगर ।
के नभमंडल लोहे कीटाल उजालत मस्क लेसो सिकिलीकर ॥
साई सों साजन वोढ लठि दुलडी सीपडी बिवीमे तनर्की बर ।
कें जयराम वऱ्यो व्योमकेसके भाल हुतास ओ बालनिशाकर ॥१८॥
अंबरतालमों बालससी बनसी अटक्यो मनो मी है निश्चल ।
कें उडुमंडल फुल किडालनिवावन बाके सो आकुसको फल ॥
बालक मैनको नैन लगो जनि नाहरको नख बांध्यो गलस्थल ।
पूजो अनंतनरायन फले सो तामें लख्यो एक केतकिको दल ॥१९॥
(१२)
कोपि ।
॥ हम्यो तमको हिह भानसों इतो है ॥
अथोसौ ।
चक्र निशाकर इंदरजालिक खेल धयो ।
खकरंडक माझ कबूतरकोपर काम महीप मुकाम भयो ॥
मकराकृति केत झलंके + + + + भलस्कर ।
संध्य जलांजलिकें जयराम ये रूपे कसी पवनी विधिके कर ॥२०॥
तारा मालती बलको नभ बीच बोयो कंद ।
आलवाल जल जिमि गयो हिमसों अधो वंद ॥२१॥
बालक चौथिके चंदकी चार कला मिलि रेखकी ।
तिरिप लेत मनो गिर परी फाटिक मुद्रा रुद्रकी ॥२२॥
पुष्करवीज गजइंद्रको पाय गह्यो नभनक्र ।
वयमोचन अधचंदसे आघ गह्यो हरिचक्र ॥२३॥
नभ सबसी लेटो पकरी मदनजुद्ध भये चारच् ।
अरधचंदके छंदसो बीनी दीनि नारक् ॥२४॥
उपमा चौथिके चंदकी सब कवि लेय लूट ।
सेंवटकों हम पायि नभनालवृंतकी मूठ ॥२५॥
तारा खैतमु खातु है तिमिरकाकको वृंद ।
उहको हाकान मैनकी गोफन आधो चंद ॥२६॥