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(१८)
कासीवासी देव अरु सेस व्यास उपनाव ।
बरिखासन ले जात है आपने अपने गांव ॥४०॥

सो जथा ।

दव कहे दिवके बरिखासनयो धनधान जहान कहों हे ।
शेसु कहे र विना धरनी करनीय तुह्यारी कछु नहिं सोहे ॥
यौं जयराम विवादु करें तब व्यासकु पुछतु है बर को है ।
व्यासु कहे रे कहां वरिखासन यो बरिखास न साहेबको है ॥३४॥

(१९)
अपने अरु परदेसके बरखासनिक हजार ।
करतें घटापट राजगुरुपद भाकरके द्वार ॥

सो जथा ।

साहेब शाह सुनो एक बात अचर्ज सो मानतु है मन मेरो ।
तैं निजधर्म ते धर्म-सिबि-हरिचंद-पुरु-जनकादिक फेरो ॥
एसो गुनोदधि सौर दयानिधि वा तुजमों तरत मन हेरो ।
या डरतें जियमधरको निजकों परकों वरखासन तेरो ॥३५॥

(२०)
एक बडो बलभद्रकवी रह्यो साहेके साथ ।
उहू गज नृपके प्रीतिको ले न लगायो हात ॥

सो जथा ।

जयराम जयेत समेत वसे ग्रह वस्थ किये सिव ते सरजा ।
गजदान हि देत कहिं तुम्ह यौं कवि जौं जस चाहे सा ले घर जा ।
काहुं येक गुनि जगु गनेसु गहयो सो भयो भयभीत रह्यो रलजा ।
टक्यो गलदाम लियें निजधाम सो देरि वहर ओर गिरिजा ॥३६॥