Deprecated: Required parameter $article follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $helper follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $method follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

(१०)
गुरु नारायनभट्ट कहि साहिजहा कहि वात ॥
साहे ज्यो मेरो होत है तो मे हों बाके हात ॥

सो जथा

जगदीश विरंचिकु पुछत है कहो शिष्टि रची रखे कोन कहां ।
कर जेरि कही जयराम विरंच्ये तिरिलोक जहां के तहां ॥
ससि वो रवि पूरब पश्चिम लों तुम सोय रहो सिरसिंधु महा ।
अरु उत्तर दछन रछन को इत साहजु है उत साहिजहां ॥१०॥

(११)
एक समे नृपमकुटमनि यौ कहि मजलिसमाहि ।
उदय अस्त रवि चंद कौउ भांखा वरन्यो नाहि ॥
रसमंजरि ज्यौं भानुकर लागत भइ विकास ।
भाखा कबि सब वाहिको बदलो करत प्रकास ॥
अथ नायका एक यह भाखावस्त्र अनेक ॥
त्यौं हम कल्पित अर्थ पर हम ही करत विशेख ॥

सो जथा ।
पुरनचंदजु सुरजसों जयराम विराजत संध्यसमे । 
विधुवर्णनकें विधि शाहे सुनोहे हेंपे याहि सुनोजु बुऱ्हंजसमे ॥

अब चालिसी आई किधों बिधिको भयो हायनपंचकके सामे ॥
जग स्वर्धुनि डोरिको जोरि विलोकत नाक लगाय नमों मनोंचसरमें ॥११॥
साहेब तेज ओ कीर्त्तिं बढोत्तर लेत विधी कबिं कोवि बोलत ।
यातें मनों जयराम विरंचि नरायनका कर काटि केरोतल ॥
पुरन वंदओ सुरतुलापुट दाडि सुवर्णनदी कर ढोलत ।
मेरु हिमाचल ढेर किये यह वाके दिवानिशि तोल तोलत ॥१२॥