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पूरवपछम काढ लपेटि है देवनदी तरतंतु दिगंतर ।
पूरनचंद कठोरिके बिंब कलंक नही यह रंग लयो कर ॥
साहेब शाहाजिके गुनि लायक मांझसे रागविराग सुंदर ।
यौ प्रति वार सवारतु है करतार मनो जरतारके अंबर ॥१३॥

मैन महीपति भौन विजैन महूरत तूरत या हि घरी है ।
गौन समे द्विजकूजित यो जयराम कहे जय राम करी है ।
सास वनी सुगुनायसबासन तारकहार गरे पहरी है ।
चंद दही कर थार भरी बिंब अंक हरि हरि दुव धरी है ॥१४॥

चंदनहीयह गैनमहामुनि फाटिकलिंग किधो सुधरो है ।
सांजके राग चऱ्हायके मेखल कुंकुमचंदनलेप करो है ।
वापर यो जयरामतरायन मालतिफूल यो फैल परो है ॥१५॥

चंदनहीयत नंदके नंद खकानन गाय चरावे नरायन ।
कोनु सुनी यह दानव कंस के चानुरमुष्टि कहें निडरायन ।
साजकी लालिय तालिम भू पर खेलत है बलदेवनरायन ॥१६॥

पूरन चंड उदो जयराम चलो रवि अस्त हि सोहत सोउ ।
मैनमहीपति भौंवविजै है ये देत बिदा बिधि सो बिधी तोंउ ॥
अंशुकजालयो लोल दुशाल दयो बर अंबर जोरिके कोउ ।
खालि धरो यह पान कोंदनसो हाटंकसंपुटके पुट दोउ ॥१७॥