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(१३)
एक दिना नृप साहे करी वैरिकरिन पर मार ।
बर कुंजर सन्मुख रह्यो सो तोयो निज तरवार ॥

सो जथा ।

राजनके सरजा नृप साहे महाबलबीरकिरीटके मंडन ।
चंड गह्यो कर तें करवाल कत्यो अरिके करिको कट खंडन ॥
फैल परे मुकताहल ता परि कुंडलिसी करिसुंडके दंडन ।
मानहु बंबि समीप समेटि लेय बैठि सापनि आपने अंडन ॥२७॥
तिहारी तरवार अरिवारनविदारन पछयके पछपर पबिसी परति है।
कोउ कहें तोरो करभुवंगम जीव मानों कोउ कहे गरल अरिजीवन हरति है ॥
कोउ करनलिनकी अलीनकी माल कहे मेरे जानि अम्रितके लहरि
धरति है ।

साहे बलविक्रम तुं मारतु है जाहिजाति ताहिताहि मन्मरमों अमार करति

है ॥२८॥

(१४)
एक भाट नृप दरसकों करत घरघर जात्र।
वह मिलाय हाथ दयो सो करुनामय महापात्र ॥

सो जथा ।

प्रातसुलांतलों देत अघातन हातनि तें विधिकें निधि वारे ।
वीचवीच छनतें छन दायति पंडितमंडलि है मनो तारे ॥
मालके नंदन दु:खनिकंदन तें हरिचंदनके व्रतधारे ।
एक चुकोरजु हेरत ताहि को प्याव पिख मयूखनिहारे ॥२९॥
देखो बलायन साहेब यो जिसकी बनि पीनु खवानि सही है ।
वाहिकों तुरस नाक करु बर्णन काहेको और के नैह नही है ॥
निश्चय सो जिययों यहि जान अचानक कंचन नखानिल ही है ।
का कमि है तिनको धनकी जिन्हकी नृप साहजु वाह गही है ॥३०॥