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(५)
शामगुसाईयों कहि अंबा ते सहाये ।
अर्थचित्र कछु कवि कहो ज्या पर रीझे साहे ॥

जथा ।

तैं तरवार गही करवारिज च्यारि दिसा अरिराजु भागे ।
वैरिवधु वेंचढीं गढकूं सो खडि रह नेन तमों नहि जागे ॥
चंद बच्यो उन चंदमुखी बिच बंद हि चंद विधुंतुद आगे ।
शाह बली तों बाहुनको जसु राहु ससी वस राहन लागे ॥५॥

(६)
तब ठाकुर शिवदास तयौं कहत समस्या हते।
बह कबिकोविद दरबरकागजपर लिखित लेत ॥

जथा ।

मालमकरंद सुव साहे तेरे वैरनकी बंदरके बंद परी कंदरिमों सुंदरी ॥
कोमलकमलहूतकुद्मलिनी भाजभाज साज पर सोय गई रोयरोय कै घरी वनचर
आयसुंगे तालफल जानि कुच बिंबफलविभ्रसों ओंठ मूठमों धरी दारिके बीज जानि
दांत गहे दांतनिंसों और और भांत भातकी विपत्ति गात कों करी ॥६॥

(७)
भारवाकाननकेहरी तब कवि केहरिनाम ॥
एक ठोर नृप साहेको वरनो गुन जसधाम ॥

जथा ।

बाडवमो तायां रवि खारे सिंधुपे उजरो थें तेरे तेजु तरनिकिं कला उन छूपि है।
तैसे जस लेस हुकि उपमा न सुधा पावे वार डारि सुर धुनि ज्यों कामधेनु दुही है ।
तेरे गुनगनिबे कें विधिना विधुये मेरु करि तारा मुकताहल माल मानो गहि है ।
साहे गुन जसधाम गम थक्यो अष्टे ज्याम याते कहे जयराम तेरे संम तू ही है ।