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(३)
ठाकुर चतुर दसों दधके सोहु न कोहु न लेत ।
वर्णों साहेब साहे यौं अर्थसमस्या देत ॥
चारि चरण जमक करि करो सवय्या एक ।
ज्यामें नरपति साहे कों वर्णों कछुक बिसेख ॥

सो जथा ।

साहेब तों सम कोन अहें ।
सूरजु सूरज उपर ताप तपो हैं ॥
कौनु कहुं अब तेरे मुकाबल ।
काबल ते कारभार लयो है ॥
बांधि जमद्वर साहें तें माजकु ।
साहे तमाजकु भैजु भयो है ॥
साहिजु हि कर लेत फिरंग ।
फिरंगिनकों फिर रंग गयो है ॥३॥

(४)
तब कवि लछिराम कहि ऐसे ही नृप साहि ॥
फूलि तिलोकमौं फैलि है सो कीर्तन बरनो काहि ॥

जथा ।

साहेब तेरीय कीर्त्ति पौन सों गौनके अधिकता तें लरी है ।
न्याव कुंदा फिरे तिरिभौनमों ता पर शंकर नीति करी है ॥
पडन लियो पवनासन लीलिवो कीरती बंद त्यौं सीर धरी है ।
जोन्ह ढुकूल दयो बहू मोल सो फुलि तिलोकमौं फैलि परी है ॥४॥