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एकादश उल्लास:

तत: स रसिकजनसमाज स्तस्मात् प्रबंधगायकादामूलचूलं संस्कृतराधामाधवविलासं श्रुत्वा पुनरप्येवं पप्रच्छ । अहो प्रबंधपाठका स्तेन राजकुमारेण संस्कृतराधामाधवविलासश्रवणानंतरं यदश्रावि तत्सर्वमादितो वयं श्रावणीया: । श्रूयतां । तत: स राजकुमार स्तं कवीश्वरं भाषासमस्य प्रकरणं कथनीयमित्युक्तवान् । कवि:।

(१)
॥ रघुनाथव्यासो यथा ॥

॥ बैरनकी वधू फिरे बैरनके बनमे ॥
मालामकरंद सुव साहेब बलि बंड तुव दापहि सो कांपे तंहा कोन रहे रनमे ॥
राजानके राजा तुव बाजा उन सह्यो जात धाकतु है साहिजहां तहां मनमे ॥
बाजत कर्णाटक भाजन कर्णाटुक बाटनमें कांगडें हाटक सेतनमे ॥
बालमकी बाट लखें बारबार बावरिसी बैरनकी वधू फिरे बैरनके बनमे ॥१॥

(२)
चंदनभाखागहनके ग्रीवखमरुतुर झात ॥
रघुनंदनकवि त्यौं कही बिखमसमस्या भांत ॥

जथा ।

॥ नौद्रुके नवपल्लव राते ॥
वारिजलोचनि बालनवोढजु
खेलति ही कहु ख्यालके नांतें ॥
कान्ह अचानक आन गही
कर छुवत छातिन्ह कामके माते ॥
चौंकिगरि द्रिगचंचलतार
निकौ लर्भे भौंर मनों फहराते ॥
हात नचावत बातन यौं मनो
नौद्रुमके नवपल्लव राते ॥२॥