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राधामाधवविलासचंपू (शहाजी महाराज चरित्र)
(५१)
दोहा
एक गुनी गुजारतनों आव्ही करी बखाण ।
साभलि बलि नृपमौलिमणि रीझ्या साह सुजाण ॥
छंद शंभु
महिमंडल फर्तां अर्थ घणा जण जाणो छों ।
मनमा छे जेहु कहिजो तेहुं तत्तत्कवित्व बखाणो छो ॥
गुणिना छो आकर रूप दिवाकर सेष थक्यो छ गावानें ।
मण शाहनरेश्वर एको ईश्वर बीजो छें नहि थावाने ॥१२१॥
घनाछरी
आखो दाढो रुडी पठे जवा माटे केटलाक नलरामनाम लेई पामवेद गाय छे ।
वलि जेव्हां त्येव्हां द्विज बीजी वारराज लेवा कासि भरि कावडोने सेतबंध जाय छे ॥
केटलाक रोटला ऊनाखी साधे हट्ट जोग खट्ट चक्र भेदवानें मोटुं ना कषाय छें ।
अम्हे अणिं जाणु दु:ख जाय सर्वत्रेस भुकतेहुं सुख शाहराजमुख देख्या थाय छे॥१२२॥
छंद मदनहरा
वंसावलि जाणे कवित खाणें रीझे राणे राव घणे घणु सरल भणे ।
एको गुजराती पाम्यो हाती तृण हयजाती पदक गलेसुहु त्रिमिर दले ॥
वलि कुंडल वीरा मुदरी हीरा पटका चीरा जरि जामो जगमग जामों ।
बेहुं करकंकण वेण कंच हतो अकिंचन गाम गयो सुखि घणोइ थयो ॥१२३॥