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राधामाधवविलासचंपू (शहाजी महाराज चरित्र)
(५३)
दोहा
वर्गीं मंतयौं कहे बले साहेके वस्त्वा + + + + ।
जिन्ह बस लाय हात धरि पातशाहकों तरतें ॥१२६॥
(५४)
छंद लक्ष्मीधर
मालामकरंदका देख फर्जंद यो ।
आज इस् राजमे मर्द गाजी ग्रही मस्त ध्राधीब जो ॥
द्वार जिसके खडे ॥
पाखरां सों कसे ॥
स्वार पछी वसे ॥
खालु कर्णे सजें ॥
खुब बाजें वजें ॥
माहियां दाहलें ॥
मोर्तवे सल् झले ॥
गर्द ऐसी उडे ॥
चांद सूरज बुडे ॥
फौज बांधे चडे ॥
सब जमी खल भाले ॥
मोंगलां शक धरे ॥
रूमशामी डरे
बाज जैसा बुडे ॥
दुश्मनांकूं लुटे ॥
सिर धरे जोर ॥
जासो न पावे सजा ॥
है खुदाका वली ॥
साहि सर्जा वली ॥१२७॥