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(४९)
चौबोला
हिंदुस्थानी भाट बखानी सो यह वानी खलक सूनें ।
पूरव पश्चिम उत्तर दछन खानखवानहु सीस धुनें ॥
बगीं बक्सर ठठ्ठा भइक्कर बागुल काबल भूप बडे ।
साहेब साहजिके दरबारमें चौकी पहरा देत खडे ॥
कोइ खडे हात जोडे कोई आघें दौडें कोई पैआरें झाड धरें ।
कोई लिये पिकदानी कोई लियें पानीं कोई शिर छत्रकि छाहें करें ।
कोई पेत्रकस ल्यावें बंद कहावें किं रंगोरुं हाल लियें ।
कोई कोई जस गावें कोई चुष खावें कोई कहें जुगुजुगुसाहि जियें ॥११७॥

(५०)
दोहा पारसी
नविसंदे अल्ला मकस्द् दिल् हम् चूं गुफ्ता ।
जैंकसुंदे मये जान् मन् खलस् खर्दन् मफ्ता ॥११८॥

धनछरी
बिविन्जाने मन् वात्करोषी दुकन् दुरोद् दख्खन् साहि महाराज् अस् ।
गर्भे अफताब् साये महताब् कम्ते लुकमान् पेश् दो न हे चकस् ॥
ताले मेवायद् कि मुलाकात् सुदे तुरा रथाहद्दाद् फील अस्प् हुन् सद् पंज् शश् ।
कवि हाल् शबीयार् फिकिर् बुगुजारहन् रायउमराव् नौकरी नकुन् पस् ॥११९॥

छंद चर्चरी
उम्दे आदम् वातत्फरो शूई जूद् आमद् दर् दखन् ।
पेशरा जे गुफ्त हम् चूं सिकम्माया पुरबुकुन् ॥
फील् आस्फां शुतुर् गावा बिदेह् विश्रौ यक् शकुन् ।
ऊरा नौकई कर्द् साहे बमे रिहद् हरदाहो जहुन् ॥१२०॥