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(२५)
कागज पर तारीज यह एक बरसको दान ।
साहे दयो गुनि खलकको सो जानत सकल जहान ॥

सो यथा ।

साहेब साहे चिरंजीवय तु रहू पुत्रकलत्रसुं कापि मुनीके ।
या जुगके जनको तु हो नृपधर्म करे अरु कर्म मुनीके ।
कौ लोक हों तुमसे तुम ही जसु फैलि रहो जस चंद मुनीके ।
और नरेसकि जेति दुनी उन्हकी दुनि दान हे तेरे गुनाके ॥५७॥

(२६)
रामानुज भाखाकवि नाव रहे रघूनंद ।
साथ कियो जयरामके व्यालभूपकुलंचद ॥

जथा ।

रामको बान हे बानि तिहारि कहे जयराम नष्टरिं टरत्तु हे ।
मोहि कियो रघुनंद बराबरि सो अव आरको और बस्तु हे ॥
साटि पिछारि हे साथ लयी दगळा अगळा उपताप धरेतु हे ।
सीतको भीत दु बोलत हो तो त्रिसिंध भये फिरि मोसु लरतु हैं ॥५८॥

जानि निसा परकीय बधू रवि ताहि दि मातें मनावन लागो ।
पाछे परोयि फिरो तिरिभोन कहे जयराम दिवा दिवानिशि जागो
एक दिना धो नाय लयी सो हिमगम ही रुतमो रुतु मागो ।
गर्भ तो माढोयि बाढन लोगो सो ढढोइ टेढा वजात हे भागो ॥५९॥

राति वो घौस धारोस करे कछु सोप रहे न हि काम चहयो है ।
जाडे की जोर जगी जब जामिनि अंबर आधि करें चिलियो हैं ॥
हात छुवा वनवात करे कछु प्रात लोगत हि सीत मह्यो है ।
यौ मनो बात सर जेरु भयो विष्णु शे कुचकोशेकु चापि रह्यो है ॥६०॥