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संस्कृत भाषेचा उलगडा

२५ अजन्त व हलन्त शब्दांनंतर सर्वनामांचा विचार ओघानेच येतो. खालील क्रमाने सर्वनामरूपांचे पृथक्करण करतो.
त्यत्, तद्, एतद्, इदम्, यत्, किम्, इ.इ.
अदस्
त्रि, चतुर्
अष्टन्
अस्मत्, युग्मत्
(१) पाणिनीय त्यद् शब्द : पाणिनी त्यद् असे प्रातिपदिक देतो. परंतु त्य हे मूळ रूप समजणे प्रशस्ततर. त्य हे सर्वनाम पूर्ववैदिक समाजात दोन तऱ्हेने उच्चारीत. एक समाज स्य उच्चार करी व दुसरा समाज त्या असा उच्चार करी. तस्थिवस् ह्न तस्थिवत् असा त चा स उच्चार आर्य भाषात होतो व होत असे. हे त्य ह्न त्य सर्वनाम देव शब्दाप्रमाणे चाले. इतकेच की चतुर्थी, पंचमी, व सप्तमी यांच्या एकवचनी स्य, स्यात्, स्य, स्यि हे प्रत्यय न लागता स्मै, स्मात् व स्मिन् हे प्रत्यय लागत. पूर्ववैदिक भाषात त्य ह्न स्य असा चाले :

                        पुल्लिंग
           १                   २                        ३
१     त्य: स्य:         त्यौ स्या           त्ये स्ये, त्या: स्या: न्याँ: स्याँ:
२     त्यं स्यं             '' ''              त्यान् स्यान्
३     त्येन स्येन      त्याभ्याम्          स्यै: स्यै:
                         त्याभ्याम्
४    त्यस्मै स्यस्मै      ' '                त्येभ्य: स्येभ्य:
                            ' '
५ त्यस्मात् स्यस्मात्   ' '                     '' ''
' '
६ त्यस्य स्यस्य       त्ययो: स्ययो:    त्येषाम् स्येषाम्
७ त्यस्मिन् स्यस्मिन्    '' ''              त्येषु स्येषु