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संस्कृत भाषेचा उलगडा

(३) वारि + म् + इ = (मूळ शब्दाची टि प्लुत ) वारि ३ + म् + इ =
(अनुनासिकामुळे म् लोप) वारि ३ + इ = (अनुनासिकाचा न् होऊन ) वारी
३ णि.
मिळून वारिँ १, वारिणी २ व वारी ३ णि अशी रूपे होत.
मधुँ १, मधुनी २, मधू ३ नि
कर्तृ १, कर्तृणी २, कर्तृ ३ णि.

अशी रूपे होत. आता अकारान्त नपुंसकलिंगी कमल शद्बाची साधनिका देतो :ह्न

(१) कमलँ + म् = कमलम्ँ = कमलम् १ (पाणिनीय)
* अन्त्य अ ऱ्हस्व ऊर्फ एकमात्राक

(२) कमलँ + इ = कमले २
* अन्त्य ए द्विमात्राक ऊर्फ दीर्घ

(३) कमलँ + म् + इ = ( मूळ शद्बांचा अंत्य स्वर प्लुत )
कमलँ ३ + म् + इ = (अनुनासिका स्तव म् लोप )
कमलाँ + इ = (अनुनासिकाचा न् ) कमला ३ नि
आता हलन्त नपुंसकलिंगी शब्द घेतो व त्याची साधनिका देतो:ह्न

(१) महँत् + म् = (म् लोप) मह १ त्
* ह तील अ ऱ्हस्व

(२) महँत् + इ = महती २ (द्विमात्राकात्वामुळे दीर्घ)

(३) महँत् + म् + इ = (मूळ शद्बाची टि प्लुत ) महाँ ३
त् + म् + इ = (म् लोप) महाँ ३ त् + इ= (अनुनासिकाचा न् होऊन ) महान्त्
+ इ = महान्ति
* हलन्त शब्दांच्या ऱ्हस्व किंवा दीर्घ टि त्या भाषेत नित्य अनुनासिक असत,
हे लक्षात ठेविले पाहिजे.

प्राच् शब्द :
(१) प्राँच् + म् = प्राँक् = प्राकृ (पाणिनीय)
(२) प्राँच् + इ = प्राँची २ (द्विमात्राक) = प्राची (पाणिनीय )
(३) प्राँच् + म् + इ = प्राँ ३ च् + म् + इ = प्राँ ३ च् + इ= (अनुनासिकाचा ञ
होऊन ) प्रा ३ ञ्चि = प्राञ्चि (पाणिनीय)

कमल् शब्द :
(१) कमँल् + म् = कम १ ल् (ल्मुळे अनुनासिक लोप )
(२) कमँल् + इ = कमली २ (द्विमात्राक)
(३) कमँल् + म् + इ = (ल्मुळे अनुनासिक लोप ) कम ३ ल् + म् + इ = (म्
लोप) कम ३ ल् + इ = कम ३ लि =कमलि (पाणिनीय)

ददत् शब्द :
(१) ददँत् + म् = ददत्
(२) ददँत् + इ = ददती
(३) ददँत् + म + इ = ददन्ति
ददँत् + म + इ = (अभ्यस्त शब्दांचा आदि उदात्त असता)
ददति (पहिल्या अ वर उदात्त येऊन अनुनासिकाचा लोप होतो)