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घनछरि
सुनियत है मेहरि हमार कवितिलक वा घालतें हैं कि जन्माकें पारक तों हावाहैं।
याक संग पलक्कि याक ध्वार द्वार स्वार याक पुनिया कहति याक छृट अस् छावा है ॥
घाखत हो पतिबिपति सब गई भाज असदानु मेरे प्तकौ न घास पावा है ।
मालमकरंदनंद साहे महाराज दीन जहे करिजस दसदि गावा है ॥११३॥

छंद तोटका
भट्टु अखे गुण कावुद लेहुण । साहे नरेसुर दख्खणदैसुण ॥
+ + + + + + + + + ॥
+ + + + + + + + + + ॥
देसुण असि ल्लाहोर शाहर + + । विच्च रह हकु मंगत अजुगल्ल तहां ॥११४॥

(४८)
चौबोला ।
शाह महीसुर फौजें चले महामंडलदानचक्र हले ।
गढ मढ ढप्प ढब ढुहले बैसे खमठ दिपिठ्ठि मले ॥
रुद्ररूपभूपजस तज सुं चन्नु सुभन्नुकिते ।
बिक्कम कसिवीसे उसीनर सीसोदियें ईस जित्ति लिते ॥११५॥

घनछरी
व्य + देहां असीहुण दख्खणदे उमराव शाहजेहा राजा सुणहि क्कन सुहांदा है ।
मंगत जोंमत्तेमतेहाथी हीदा दानु दे दाट वकषुल्ला जसु जेहा पुणि महाचादा है ॥
दह वी हजार स्वार चढ दे हांतिम दे नाल पह त्यां वेवीह त्रीहल रल्लहुन स्वांदा है।
विच्च जिथें जंगलदेश घरवा दे सिंध लीनों उछे घडि शाहर है शाहरहा जादा है॥११६॥