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राधामाधवविलासचंपू (शहाजी महाराज चरित्र)
दोहा
ऐसा राजा शहाजी कनककलानिधि जाण ।
परधनवनिता ये विखीं ज्यास असे हो आण ॥
(४४)
श्रोते म्हणती भला भला दुसरी भाषा बोल ।
शब्द तुझे वहु चांगले श्रवणमनोहर खोल ॥
वक्ता विनवी श्रोतयां तुम्ही मकरंदमिलिंद ।
पुनरपि आतां आयका उत्तरभाषाछंद ॥
॥ॐ॥
आयो उत्तरदेसतें घाटमपुरको भाट ।
उन्ह गजमदसों देश लो कीनी चहपह बाट ॥
अरिल्
नाव सुबुधिराव है जाको । वाकों साहे कइक दिन राखो ॥
जा दिन बाहि विदा करि दीनो । ता दिन यह कछु वर्णन कीनो ॥
आयुखमान भये किमिराना । गढ चित्रोड उदयपुर थाना ॥
पायो छत्रसींघासन वाना । अरिल् सवय्या कवित बखाना ॥१०३॥
इंद भयो सब हींदुनको अरु आयुखमानयो छत्र कियो है ।
ज्यो हि गोवर्धन कृष्ण ध-यो तर गोकुल वो कुल लोक जियो है ॥
साहे खुमानको दान कहा विधिकै सैं कयो निधि मोल लियो है ।
कारनियाको कह्यो करतारनें सींसोदियें कुल सीसोदीसो दियो है ॥१०४॥
कुंडलिया
सह जिंही वाको दान यह दीनो साहे नरेस ।
तकि तकिं लज्जित जित तित पूछत भूप असेस ॥१०५॥
पूछत भूप असेस मंगतके आगें आवहि ।
अति आदर गहिहात रात निजनग्नवसाबहि ॥१०६॥
अति आदर गहि हात विविध विधि धावें खरच हीं ।
पुनि पनार नहि प्रात जात तकोसक पर सहज कीहीं ॥१०७॥
मत्त मतंगज वाजिकि राजि वोस सज्ज समेत जमाते लियेतें ।
हेम लखल्लखि पालखिमो लख्यो दग्विनि सों गुनि अख्खिनीये तें ।
पुच्छत भादकुं आवेरके नर दान लयो गुन कौन किये तें ।
भाट कहें नृप साहं दियो रे सिसोदियो देत आसीस दीये ते ॥१०८॥