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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १०२ ]                                             श्री.                                        १५ नोव्हेंबर १७२८.

स्वस्तिश्री राज्याभिषेक शके ५५ कीलकनाम संवत्सरे कार्तिक बहुल दशमी भृगुवासरे क्षत्रियकुलावतंस श्रीराजा शंभूछत्रपति स्वामी याणीं समस्तराजकार्यधुरंधर विश्वासनिधी राजमान्य राजश्री भगवंतराव अमात्य हुकुमतपन्हा यांसी -
आज्ञा केली ऐसी जे - तुह्मीं विनंतिपत्र पाठविलें तें प्रविष्ट जाहलें. कितेक निष्ठापूर्वक व श्लोकयुक्त लिहिलें. व राजश्री नरसो तिमाजी व राजश्री रघुराव व तुकोजी खांड्या या समागमें सांगोन पाठविलं. तेणेप्रमाणें यांणीं निवेदन केल्यावरून विदित जाहलें. ऐशास चालवायास स्वामी अंतराय करणार नाहींत. हा अर्थ वारंवार लिहावा असें नाहीं. हालीं तुह्मांकडून उभयता आले, याजजवळ सांगितलें आहे सांगतां कळेल. सर्वप्रकारे समाधान असों देणें. व राजश्री शिवराम रामचंद्र यांचा उजूर स्वामीचे दर्शनास धरिला. तरी स्वामीचें दर्शन त्वरित तुह्मांस व्हावें, हें स्वामीस बहुत अगत्य. या करितां सत्वर स्वामीचें दर्शन तुह्मांस होय तें करणें. व राजश्री श्रीनिवास शिवदेव यांकडील गांवचीं पत्रे द्यावीं, ह्मणून तुह्मीं लिहिलें. त्यावरून मशारनिलेकडील गांवांस ताकीदपत्रें दिली आहेत. बहुत लिहिणें तरी सुज्ञ असा.
                                                                                                                   मर्यादेयं
                                                                                                                   विराजते.