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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १०६ ]                                          श्री.                                        २ जानेवारी १७२९.

स्वस्तिश्री राज्याभिषेक शके ५५ कीलक नाम संवत्सरे पौष शु।। चतुर्दशी गुरुवासरे क्षत्रियकुलावतंस श्री राजा शंभुछत्रपति स्वामी यांणीं समस्तराजकार्यधुरंधर विश्वासनिधी राज्यमान्य राजश्री भगवंतराऊ अमात्य हुकुमतपन्हा यांसी आज्ञा केली ऐसी जेः-

तुह्मीं विनतीपत्र पाठविलें तें प्रविष्ट जाहलें. व राजश्री नारो हणमंत व बाळाजी महादेव यांसमागमें सांगोन पाठविलें तेणेप्रमाणें यांणीं सांगितल्यावरून कळों आलें. ऐशास, स्वामीचे तुमचे दर्शनास बहुत दिवस जाहले, यानिमित्य त्वरेनें तुह्मीं येऊन दर्शन घ्यावें, हें स्वामीस अगत्य, त्यास, राजश्री शिवराम रामचंद्र याकडील गुंता सांगोन पाठविला तरी त्याकडील उजूर धरावा लागला आहे, हे गोष्ट उचितच आहे. त्यास, तेविशींही बहुतसा साक्षेप करून याउपरी स्वामीचे तुमचे दर्शनास दिवसगत न लागे तें करणें. रत्नागिरीकडील प्रसंग लिहिला. तरी जें होणें तें राजश्री गोपाळ रामराव यांचे अमर्यादेमुळेच जालें. व धनसंपदा लटिकी, सर्व अर्थ दो दिवसाचे आहेत. ह्मणून कितेक परमार्थयुक्तीने लिहिलें. तरी जें तुह्मीं लिहिलें तें उचितच परंतु हे मार्ग हे तुह्मां लोकांस बोलिले आहेतसें नाहीं अजरामरवत्प्राज्ञो विद्यामर्थ च साधयेत्, ऐसें आहे. स्वामिकार्यनिष्ठा चतुर्विध अर्थ घडतच आहेत. तुह्मांस कांहीं न कळेसे नाहीं. वरकड त्रिवर्ग लिहितां कळेल व मल्हारजी सूर्यवंशी यासमागमें तुह्मीं सांगोन पाठविलें तेणें विदित केलें. हाली यांजवळ आज्ञा जाली आहे सांगेल. बहुत लिहिणें तरी सुज्ञ असा.                    

                                                                                                               मर्यादेयं
                                                                                                               विराजते.