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संस्कृत भाषेचा उलगडा

व्यंजनात सर्व शब्द या तस्थिवस् शब्दाप्रमाणे सर्वनामस्थान भ व पद अशा विभागाने चालतात. यात स्त्रीलिंगी शब्द पुल्लिंगी शब्दाप्रमाणेच चालतात. स्त्रिलिंगाचे वैभक्तिक निराळे प्रत्यय नाहीत ही बाब लक्षात ठेवण्यासारखी आहे. अकारात पुल्लिंगी शब्द व व्यंजनान्त शब्द यांच्या प्रत्ययांची तुलना करू, प्रथमा व द्वितीया यांचे प्रत्यय दोन्ही शब्दांना सारखे स् व म् हे आहेत, त्यात बदल नाही. परस्थानीय प्रत्यय दोन्ही शब्दांना भ्याम्, भिस् व भ्यस् हे सामान्य आहेत, त्यातही बदल नाही. भस्थानीय प्रत्ययात मात्र भेद आहे तो खालील तखत्यात देतो :

            आकारान्त             व्यंजनान्त

३ x १          स्येन                   स्या ह्न
४ x १          स्थ                     स्ये ह्न
५ x १          स्यत्                  स्यस् ह्न
६ x १          स्य                     स्यस् =
६ x २          स्योस्                 स्योस् =
६ x ३          स्याम्                 स्याम् =
७ x १          स्यि                    स्यि=
७ x २          स्योस्                 स्योस् =
७ x ३          स्यु                     स्यु=

अकारान्त पुंल्लिंगी शब्दांच्या व व्यंजनान्त शब्दांच्या प्रत्ययामध्ये असा भेद का ?भेदाचे कारण एकच संभवते. ते हे की, पूर्ववैदिक आर्यसमाजात एक भाषा केवळ स्वरान्त शब्दांची असे व दुसरी भाषा व्यंजनान्त शब्दांची असे. संस्कृत शब्दाखेरीज करून मराठीत प्राय: प्रत्येक शब्द जसा स्वरान्त असतो. तसा प्रकार प्राय: एका पूर्ववैदिक भाषेचा असे आणि दुसऱ्या पूर्ववैदिक भाषेत प्राय: सर्व शब्द इंग्रजीतल्याप्रमाणे व्यंजनान्त असत. स्वरान्त बोलणाऱ्या समाजाचा व व्यंजनान्त बोलणाऱ्या समाजाचा मिलाफ होऊन वैदिकसमाज बनला.