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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १७७ ]                                            श्री.                                         १९ ऑगस्ट १७४८.                                                                                                                                      

श्रीमंत राजश्री शिवरामपंत व राजश्री कृष्णरावजी स्वामींसः -
विनंति सेवक नारो महादेव मुकाम शहर अवरंगाबाद साष्टांग नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल भाद्रपद शु।। ७ शुक्रवारपर्यंत स्वामीचे कृपेकरोन यथास्थित असे. विशेष. बहुत दिवस जाले. परंतु अभय पत्र पाठवून सो । परामृश न केला. हें अपूर्व ढिसोन आलें इकडील वर्तमान सविस्तर मा। रा। रावसाहेब यांचे पत्रीं लिहिलें आहे, त्यावरून विदित होईल. आणि राजश्री रावसाहेब हें कार्य स्वामीसच करोन देणार, आणि स्वामी निसूर बसले आहेत, हें अपूर्व आहे ! जर हें कार्य स्वामीस कर्तव्य नसलें तरी गंगाजीस सत्वर पाठविजे. ज्याच्या वडिलीं घोडे कधीं दृष्टीस पाहिले नव्हते. ते या राज्यांत येऊन पंचहजारी मनसबदार जाले ! आणि स्वामीस तों नबाब साहेब आपणहून चहातात. वारंवार आपल्या वडिलांची स्तुति करितात. आणि बहुत खुश आहेत जे, राजश्री राव येथें आलिया उत्तम आहे. तरी स्वामींनीं हें कार्य चित्तीं धरून कीजे. तरी तुह्मीं मा। रा। रावसाहेब यासी सांगून गंगाजीस व आपला कोणी इतबारी असेल त्यासी पाठविजे. त्याच्या मार्फतीनें कार्यभाग केला जाईल. या कामास विलंब न कीजे. उत्तर व गंगाजीस सत्वर पाठविजे. हे विनंति.
                       जासूद
                       आपाजी
                       मलकोजी.