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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १७६ ]                                            ।। श्रीभवानीशंकर ।।                                       १९ ऑगस्ट १७४८.                                                                                                                   

श्रीमंत राजमान्य राजश्री शिवरामपंत व पा। राजश्री कृष्णराऊ स्वामीचें सेवेसीः-
सेवक नारो महादेव साष्टांग नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल जाणून निजानंदेलखनार्थ आज्ञा इच्छितों. विशेष. कृपा करून पत्रीं सनाथ केलें उत्तम समयीं प्रविष्ट होऊन परम संतोष जाहला. येथील सर्व भावगर्म श्रीमंत राजश्री रायांचे पत्रीं लिहिलें आहे ध्यानास आणून सरंजामाची रवानगी अति अविलंबें येऊन पोहोचते तरी सर्व कार्याची उभारणी होऊन येते स्वामी प्रसगीं सुज्ञ आहेत हें कार्य सर्व स्वामीचे उर्जितांचें आहे आपलें उर्जित उत्तम प्रकारें करणें आहे. तरी श्रीमंतजीस विनति करून सरंजाम व वस्त्रें अविलंब पावतीं जालींत, ह्मणजे सर्व होऊन येईल. याहिवरी स्वामी सुज्ञ व सरदार आहेत जें विचारास येईल तें करतील. येथे सामाईन पावलियाचे वेगळें काहीं कार्य होत नाहीं, ऐसें परिच्छिन्न जाणून जें चित्तास येईल तें करावें. विशेष काय लिहिणें हे विनंति.