Deprecated: Required parameter $article follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $helper follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $method follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

संस्कृत भाषेचा उलगडा

पत्य् शब्द यकारान्त आहे. जसा कर्तृ शब्द ऋकारान्त आहे तसा हा पत्य् शब्द यकारान्त आहे हे लक्षात बाळगिले पाहिजे. त च्या खाली ऋ लिहून तृ दाखविला जातो, तसा त् च्या खाली य् लिहून तय् दाखविला म्हणजे पूर्ववैदिक चवथ्या पायरीचा तय् काय होता त्याची कल्पना येईल. सांगण्याचा मुद्दा हा की, य् हा उच्चार अत्यंत जुनाट पूर्ववैदिककालीं ऋ सारखा स्वर होता. तपय् शब्द येणेप्रमाणे त्या अत्यंत जुनाटकाली चाले :

      १                २                ३
१    पता          पतायौ        पताय:, प तृयन्
२    पतायम्     पतायौ        प तृयन्
३    पत्या         पतिभ्याम्    पतिभि:
४    पत्ये           ' '             पतिभ्य:
५    पत्यु:         ' '               ' '
६      ' '          पत्यो:         पतीनाम्
७    पतयि       ' '             पतिषु
८     पतय्
पत्यु शब्द पुल्लिंगी गुरु शब्दाप्रमाणे चाले :
          १              २                ३

७ पत्यौ

येणेप्रमाणे पति या वैदिक शब्दाच्या रूपात पत्यृ, पतय्`, पत्यु व पति या चार शब्दांची रूपे मिसळली आहेत. अर्थात् पूर्ववैदिक तीन समाज निरनिराळया बोली बोलणारे होते हे या ही शब्दावरून सिद्ध होते. पतय् शब्दाचे पताय् म्हणून एक जुनाट रूप वर दिले आहे. अशी जुनाट रूपे वैदिक भाषेत आणिक काही शब्दांच्या स्त्रीलिंगी रूपात दृष्टीस पडतात. जसे वृषाकपायी अग्नायी, कुसिदायी, कुसितायी, मनायी. या स्त्रींलिंगी शब्दांची पुल्लिंगे कपाय्, अग्नाय्, कुसिदाय्, मनाय अशी पूर्ववैदिक भाषेत होती हे उघड आहे.