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जित तित रुहिरको पूर तहा भू भयि विभछा ।
ढालें तरकस तरत सब सोहें कछप मछा ॥
मछछल हरि गछ जलधिसों
पुछ च्छंटं निचि पंछछय हुवे
मत्तद्विरदके कुंभस्थल फटि
मुक्ता रुहिर सक्ता बदरके
विभ्रम भ्रमरिसि भिल्लिय जल मह
दुल्लिय तजितजि चल्लिय जित तित ॥१३६॥   

(६०)
कलसा
अदभुत नरपति साहे देसि तुव प्रबल बाहुबल ।
भज्जत जिततित भीत अतिससमिति समितशत्रुदल ॥१३७॥
कहुं कबंध नटबंध गहत घायलन घुमत रन ।
नाचत भुत वेताळ अरि चौसट जोगिनिगन ॥१३८॥
मेद मास वस दसन दहन पीन पीन ठोर हि तकत ।
चंडघंट करिघट करि तह घुंट घुटंघुटं तिरकत ॥१३९॥

(६१)
संस्कृत मधुना कथ्यते । वृत्तवृत्तं त्वमवेहि ॥
कविकोविदचिंतामणे । क्षणक्षण मवधानं देहि ॥
चंडीपर्वतपुरतो मार्कंङेयोस्ति पर्वतो विपुल: ॥
तत्रोद्भवेन (तेन) जयरामेणात्र किं लब्धं ॥
द्वादशभाषाभि रिदं छंदो विनिधाय पायिता: स्म वयं ।
तनैवोक्तं सर्वं संस्कृतमध्ये तदेव विज्ञेयं ॥