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(५९)
अमृतध्वनि
अब सुनिये आवह है नृपति साहेको जामे किनी दुंदुभिधुनिसों
अरि रायल मारि सब फत्ते ॥
नृपबल सज्जे चलत जब करनातनका वजाय हरबर घरघर करत अरिसो धुंधुंधुनि सुनि
साहे ॥
धुंधुंधुनि हुव कंपं गहि भुव
डुल्लइ मनोधुव चंप्यौ फनिपति
झंपौ इतरवि अंधं करननिरुंधं ।
यजसोकंध चटत गिंरिंदं
सुरवरसिंधू खलभल फंदे
जलचर रुंदे अचल निचल्लिया ॥१३४॥

नृप बल निकरत हयगजपतितर सैन सजे चतुरंग ।
नृपवर तरकस वांधिके करि तहां करकस जंग ॥
जंजंजंगं करन तुरंगं
चढि रनरंगं लहि अरिभंगं
कियरत बंबं विलपि कलिंगं
दवरत तिलंगं भजि जिम गंगं
जलनि मतंगं प्रविख तरंगं
तटवर लंघे निकरत ॥
अरिदल फटि दहवद्दहुब
किनो नरघमसा हरहर खत कर
डौलियें दौरे तजि सजमस
दौरत्त वहर दुद्द दुवल बल
दुंदुम लद्द द्विरदके कृत्ति तरद
उद्धत भैरव आवि:कृत रौरव
भुक्के फेरव तौरे दखर दंत
कटकट कट्टत विकट झपट्टत
उलटि लटघट अरिदल ॥१३५॥