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राधामाधवविलासचंपू (शहाजी महाराज चरित्र)
चंदन खोर छुरी एक कुच सो करत रंग भकसोरी ।
मानो मेरउगम ते सुरसुरि बिंदू पाति पौरि
कहत सहेलिं खेल लाल संग लज्जा तजत नौवौरि ।
रसीक रसीली रसमसे रसमो माजत नृपमुखरोरि
कामकला पर बीन अप नृप भावति है अतिभौरी ।
बरनत कबि जयराम वसंत हि जुगजुग जिवो यह जोरी ॥६४॥
प्यारी कौन सुजानकी ।
सो रहु सहसहुती अतिसुंदर कान्हा कुं जौ विखभानकी ॥धृ.॥
लखेत्त फाग पियरागरंग सो बनकबनी सुरतानकी ।
ताल फखावज बाजत लय सो वली वलीहु यह गानकी ॥
कुवुच उत्तंग रंग के छिरके चहपह जों गजदानकी ।
मानो मैन मैदान धरि है मर जादा चौगानकी ॥
रूप अनूप बनी नखसिख लोथकिं मति कबितगुमानकी ।
कवि जयराम वाम यह बरनी भावति सहि खुमानकी ॥६५॥
छनकमें अनगा जगावा हो । चितवनि तनक यह नारीकी ॥धृ.॥
सरिगमपंचमनिगमसो गावत नाचत गति लह चारीकी रंगमो कुसुमकी ।
अरि दारिजु तारनि राति उजारी सोहत अभिनय विबिध दिखावत छूटनि
हस्तक तारिकी ॥
अपर हार छुरत मोर तिनको तन पर जोति जगत सारीकी ।
सिरटि पारो और कमरज कसको काछ थटनि नटधारिकी ॥
कवि जयराम कहत हम समझी मुसक निमे यह वारिकी ।
साहेब साहे खुमान सुजान सोवन कमनीया कियारिकी ॥६६॥