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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[३४१]                                                                         श्री.                                                                      १३ एप्रिल १७३८.

श्रीमत्सकलतीर्थास्पदीभूत श्रीमत्परमहंसबावा स्वामीचे सेवेसी :-
चरणरज रघुनाथ हरी कृतानेक साष्टांग दंडवत प्रणाम विनंति उपरी येथील कुशल वैशाख शित पंचमी गुरुवारपर्यंत स्वामीचे कृपावलोकनें करून असे. बहुत दिवस स्वामीचें आशीर्वादपत्र सेवकास येत नाहीं. येणेंकरून चित्त परम उद्विग्न होऊन बहुत श्रमी होतात. तें पत्रारूढ केले जात नाहीं. तरी याउपरी कृपाळू होऊन आशीर्वादपत्री दर्शनाचा लाभ देऊन कृतार्थ केले पाहिजे. आह्मांस स्वामीवेगळें दुसरे आराध्य आहे नाहीं हें स्वामीस विदित असेल. आमचे निष्ठेनुरूप आह्मांस फलप्राप्ती होईल. सर्वविशी कैलासवासी सरखेल याजमागें आमचा सांभाळ करावयासी स्वामी वडील आहेत. बहुत काय लिहिणें. कृपा वर्धमान केली पाहिजे. हे विनंति.