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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[१८९]                                                                       श्री.                                                           १० आगस्ट १७५७.

पु॥ राजश्री बाबूराव कोन्हेरी स्वामी गोसावी यांसी :-
विनंति उपरि. शहानवाजखान आमचे विचारें वर्तत होते, हें निमित्य यांजकडे ठेवून त्यांजपासून मुतलवकिली दूर केली, बिसालतजंगास सांगितली. निजामअल्लीही अवरंगाबादेस येणार. तेव्हां तेहि याच विचारांत असतील. सलाबतजंगांनी त्यांचे विचारें हे मसलत केली असेल. असो. येविशीं राजश्री जानोजी भोसले सेनासाहेबसुभा यांस लिहिले आहे. तरी तुह्मी मशारनिलेस सांगोन निजामअल्लीचें येणें अवरंगाबादेस न होय ते करणें. जाणिजे. छ २४ जिलकाद. बहुत काय लिहिणें हे विनंति.



[१९०]                                                                      श्री.                                                              ९ एप्रिल १७६१.

राजश्री बाबूराव कोनेर स्वामी गोसावी यांसी :-
सेवक बाळाजी बाजीराव साष्टांग नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल जाणून स्वकीय कुशल लिहीत जाणें. विशेष. तुह्मी छ १६ रजबचें विनंतिपत्र पाठविलें ते छ २९ मिनहूस पावलें. बुंधेले यांणी बहुत धुंद आरंभिली, जागा जागा किल्यांस मोर्चे लाविले. मातब्बर ठाणियांत आमचे लोक आहेत त्यांच्यानें कोणाची कुमक होत नाहीं. याउपरि ठाणी, किल्ले राहात नाहींत. राजश्री गोपाळराव यांस पांच सात हजार फौजेनशी पाठवणें. ह्मणजे बंदोबस्त होऊन येईल. ह्मणून लिहिलें. ऐशास राजश्री नारो शंकर यांस झांशीस रवाना केले असे. त्यांचे हवाली किल्ले व ठाणी कुल करून तुह्मी हुजूर येणें. जाणिजे छ ३ रमजान सु॥ इहिदे सितैन मया व अलफ. बहुत काय लिहिणे. हे विनंति.