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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १५७ ]                                        श्री.                                            १७३८.
                                              

राजमान्य राजश्री भगवंतराव पंडित यासी आज्ञा केली ऐसी जेः-
तुह्मी विनंतिपत्र पाठविलें तें प्रविष्ट जाहाले. राजश्री तुळाजी आंगरे यांच्या पारपत्यास सेवकाकडून अंतर होईल ऐसें नाही, स्वामींनी दृढ अभिमानें सर्व प्रकारें साहित्य करावें, मुलास अन्नवस्त्र द्यावे, ह्मणोन विशदें लिहिलें ऐशास, तुह्मीं राज्यातील पुरातन सेवक, तुमचें सर्व प्रकारें आवश्यक तुमचे हाते सेवा घेऊन उर्जित करावें, हेच स्वामीचें मानस आहे तरी तुह्मी योजिला मनसुबा सिद्धीस पावणे ह्मणजे तुमचे चालवावयास स्वामीपासून अतर होईल ऐसे नाही सविस्तर अर्थ राजश्री यशवंतराव महादेव खासनिवीस लिहितील त्याजवरून कळेल नारळ व पाने पाठविली ती यादीप्रमाणें प्रविष्ट जाली सुज्ञ असा.