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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १५२ ]                                        श्री.                                          
                                               ˜ 
 श्री   °
                                        श्रीमत्कान्होजीसंभूत-
                                       शंभो. शत्रूज्जिगीषतःll
                                       वर्धिष्णूराजरेखेव मुद्रा
                                       भद्रा विराजते ll

राजश्री भगवंतराऊ अमात्य हुकमतपन्हा गोसावी यांसीः -
1सकलगुणांलकरण अखंडितलक्ष्मी अलंकृत राजामन्य स्ने ।। संभाजी आंगरे सरसुभेदार आरमार विनंति उपरि येथील कुशल जाणून स्वकीय कुशल लेखन केलें पाहिजे. विशेष. राजश्री यादोपंत याज बराबरी पत्र पाठविलें त्यावरून व मानिल्हे याणीं जबानी सांगितल्यावरून सविस्तर अर्थ कळों आला. सारांश, " तीर्थरूप श्रीकुणकेश्वरीं बहुत काल राहिले होते त्यांचा प्रतिपाल राजश्री कैलासवासी सरखेल याणीं करून नियत करून दिल्हा होता. त्याप्रों । किंबहुना तदाधिक्य तुह्मीं अंतर केलें नाहीं. प्रस्तुत तीर्थरूपास वैकुंठवास जाहला. मागें श्रीस्थलीं त्यांची मुलेंमाणसें व अधिष्ठान आहे त्यांचे सर्वाविशीं पूर्वापार व हाली निवतप्रों। चालवावयास अंतराय न करावा, ह्मणोन कितेक तपशिले लिहिलें तरी तीर्थरूप कैलासवासी याणीं जो नियत करून दिल्हा होता त्यास आह्मांपासून अंतर आजिपावेतों जाहलें नाहीं पुढेंही होणार नाहीं. नूतन पत्राचा विचार लिहिला तरी पुत्रप्रों। सालमारी गुंता ठेविला ऐसें नाहीं. पेस्तरही राहणार नाही. पत्राप्रों। निर्वाह करावाच लागेल. वरकड मोईनपैकीं कांहीं गल्ला राहिला आहे तो झाडेयानसी देवावा ह्मणोन लिहिलें. तरी हिशेबप्रों गल्ला बाकी राहिला असेल तो गलबतावरून देवगडास पाठवून मनुष्यास प्रविष्ट करून टाकण तीर्थरूपानीं जिनगेबद्दल ठेविला आहे तो पाठवावा ह्मणोन लिहिलें तरी टाकण सरकारांत ठेविला नाही सरकारात असता तरी पाठविला जाता त्याचे वृत्त रा. भास्कर गोसावी यास ठाऊक आहे आपणास श्रवण करितील. त्यावरून कळेल. बहुत ल्याहावें तरी आपण सुज्ञ आहेत. हे विनंति.
                                                          मोर्तबसूद.