Deprecated: Required parameter $article follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $helper follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $method follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड एकोणीसावा (१७७९-१७८४)

पो। छ ७ मोहरम                                                     लेखांक २०३.                                                    १७०३ मार्गशीर्ष शु॥ १२.
इसन्ने समानीन.                                                             श्री.                                                             २७ नोव्हेंबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री कृष्णराव स्वामींचे सेवेसीं:-
पो। गोविंदराव कृष्ण सां। नमस्कार विनंति. उपरि येथील जाणोन स्वकीय कुशल लिहित असावें. विशेषः-आपलीं पत्रें तीर्थरूप राजश्री रावसाहेबांस होतीं, व नवाब बहादूर यांची थैलीही होती, ते तीर्थरुपांनीं हैदराबादेस पाठविली. त्याचीं उत्तरें आपणांस व बहादरांस थैली ऐसी आली ते हाल्लीं पाठविलीं आहेत. त्यावरून कळेल. सारांश, तपशीलवार राजश्री नानांनीं तुह्मांस लिहिलें आहे त्यावरून कळेल. पाउण क्रोडीचें ओझें बहादुरास वाटलें असेल. त्यासः ओझें न वाटतां काय पैक्यांची तजवीज काय करतात ते लिहावें. केवळ बारानेंच परिणाम बंगाल्याचे मसलतीशीं कसा होतो, त्यास येविसींचा पर्याय नानांनीं लिहिल्याप्रों। बहादुर यांसीं बोलून लवकर लिहून पाठवावें. शिंद्याकडील वगैरे वर्तमान नानांनींच लिहिलें आहे. त्यावरून कळेल. तुह्मांस दोन तीन पत्रें पाठविलीं, उत्तर एकही आलें नाहीं. त्यास स्मरणपूर्वक पत्र पाठवावें. नानाही तुमचे पत्राची प्रतीक्षा बहुत करतात. पत्रें कसेही त-हेनें येत असावीं, युक्तीस ठीक पडल्यास. रा। छ १० जिल्हेज बहुत काय लिहिणें लोभ असों दीजे हे विनंति.