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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड एकोणीसावा (१७७९-१७८४)

पो। छ १५ जिल्काद सन                                        लेखांक २००.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
इसन्ने समानीन मया व अलफ.                                     श्री.                                                             ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

चिरंजीव राजश्री तात्या यांसीं प्रति सगुणाबाई आशिर्वाद उपरि येथील कुशल ता। आश्विन वा। १ जाणोन स्वकीय कुशललेखन करीत असावें. विशेष. तुह्मांकडील पत्र श्रीशिवकांचीचें मुकामाचें आलें तें पोंहचून संतोष जाहला. ऐसेंच निरंतर पत्रीं संतोषवित असावें. पत्री लि॥ कीं, शरीरास जपोन औषध घेऊन प्रकृतीस जपत जावें. उपास फारसे करूं नयेत. त्यापों।च जपत आहों. वरकड संवसाराचा बंदोबस्त सांगितल्याप्रों। करून आहोरात्र जपतच आहों. सर्वांस बुद्धिवाद सांगून सर्वांचा सांभाळ वडिलपणें करितों. भेटीनंतर समजण्यांत येईल. इकडील काळजी तिळप्राय करूं नये. तिकडील मसलतीची कार्यसिद्धी करून उत्साहाचें सुमारें यावयाचें करावें. बहुत काय लिहिणें. लोभ कीजे हे आशिर्वाद.

चिरंजीव बाळाजीपंत व गोपाळपंत यासी आशिर्वाद. उपरि बहुत सावधपणें वर्तणूक करीत जाणें हे आशिर्वाद.