Deprecated: Required parameter $article follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $helper follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $method follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड एकोणीसावा (१७७९-१७८४)

पो। छ १५ जिल्काद                                               लेखांक १९८.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
इसन्ने समानीन.                                                  श्रीशाकंभरी प्रसन्न.                                                  ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री कृष्णराव तात्या स्वामींचे सेवेसीं:-
पोष्य बापुजी संकराजी कृतानेक सां। नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल तागाईत आश्विन वा। १ पावेतों सुखरूप असों. यानंतर तीर्थस्वरूप यांस आषाढ वा। ८ स देवआज्ञा जाहली. ईश्वरानें मोठें वाईट केलें. बरें. ईश्वरसत्ता. प्रा। आमचा विचार फार पेचांत आहों. त्या प्रा। एक दोन आमचीं कुळें आहेत, त्यांजविषयीं येथें आपणांस विनंति केलीच आहे. आपणही मान्य केलें आहे. तरी कृपा करून त्यांजकडील ऐवजाचा फडशा करून घ्यावा. म्यां वारंवार विनंति ल्याहाविसी नाहीं. स्मरण धरून कार्य करून घ्यावें. सर्व भरंवसा आपला आहे. सदैव पत्रीं संतोषवित असावें. बहुत काय लिहिणें कृपालोभ करावा हे विनंति.

रो। बाळाजीपंत व गोपाळपंत स्वामींस नमस्कार. रो। तात्यांस लि॥ आहे, त्याजवरून सर्व वर्तमान कळेल. त्याप्रों। निर्गत होय, ऐसी गोष्ट करावी हे विनंति. उपरि लि।। लोभ करावा हे विनंति.