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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड एकोणीसावा (१७७९-१७८४)

पो॥ १५ जिल्काद सन                                                 लेखांक १९५.                                                    १७०३ अश्विन व॥ १.
सन इसन्ने समानीन.                                                      श्रीशंकर.                                                           ३ आक्टोबर १७८१.                                                                         

चिरंजीव राजश्री तात्या यांसी प्रति विश्वनाथ कृष्ण जोशी आशिर्वाद उपरि येथील कुशल ता। आश्विन व॥ १ सौम्यवारपर्यंत यथास्थित असे. विशेष. पेशजी तुमचें पत्र चे मुकामीहून आलें होतें, त्यांत जरीमरीचा उपद्रव बहुत जाहला आहे ह्मणोन संकटविषयाचें आथ लि॥ त्यावरून चिंता प्राप्त जाहली होती. सांप्रत भाद्रपद शु॥ सप्तमीचें पत्र श्रीशिवकांची येथील मुकामचें आलें. जरीमरीचा उपद्रव श्रीवेंकटेशाचे कृपेंकरून क्षेम आलें; परंतु मनुष्यांत कांहीं अवसान राहिलें नाहीं. नवाब साहेब यांच्या भेटी श्रावण व॥ द्वादशीस जाल्या. ममतायुक्त भाषण जाहलें. ह्मणोन विस्तारें पत्रीं लिहिलें. त्यावरून परम संतोष जाहला. ऐसेंच निरंतर पत्रीं आपलेकडील कुशलवृत्त सविस्तर लेहून पाठवणें, तेणेंकरून समाधान होईल. आह्मांकडील वर्तमान तरी तुह्मीं केल्यान्वयें यथास्थित असे. अधिकोत्तर नाहीं. तेरखेचे अधिकारी व गकारनामकांनीं काय काय केलें हें विस्तारें ल्याहावें ह्मणोन लि॥, त्यास, तेरखेचे अधिकारी या स्थळास आले. गकारनामक हुजूर राहिले. याप्रमाणें वर्तमान आहे. वरकड राजश्री गणेशपंत यांणीं लिहिल्यावरून सर्व कळेल. तुह्मी तेथील कामकाज करून माघारे येण्याचा विचार करून लवकरच येणें होय तें करणें. बहुत काय लिहीणें हे आशिर्वाद.

राजश्री बाळाजीपंत व गोपाळपंत यांसीं नमस्कार. सेवेसीं सदाशिव नारायण सां। नमस्कार. विनंति लि॥ परिसोन निरंतर पत्रीं परामर्ष जाहला पाहिजे. सेवेसीं श्रुत होय हे विज्ञापना.