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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १४३ ]                                   श्री.                                  १९ नोव्हेंबर १७३२.                   
                                          

स्वस्तिश्री राज्याभिषेक शके ५९ परिधावीनाम संवत्सरे मार्गशीर्ष शुद्ध त्रयोदशी रविवासरे क्षत्रियकुलावतंस श्री राजा शंभुछत्रपति स्वामी याणीं समस्तराज्यकार्यधुरंधर विश्वासनिधि राजमान्य राजश्री भगवंतराव अमात्य हुकुमतपन्हा यासी आज्ञा केली ऐसी जेः -

तुह्मीं विनंतिपत्र पाठविलें तें प्रविष्ट जाहले खर्चाची अनुकूलता नाहीं, वरकड कितेक कसलियाचा अर्थ जमाव पाठविला आहे, ह्मणून लिहिलें तें विदित जाहालें. स्वार व जमाव पाठविला उत्तम केलें. तुमचा अस्तिनास्तीचा प्रसंग लिहिला तो यथार्थच आहे. स्वामीस नकळेसें काय आहे ? राजश्री बाळाजी महादेव व राजश्री नारो हणमंत वरचेवर स्वामीस विनति करावयाची ते करीतच आहेत. स्वामीस तुमचें अगत्य आहे समाधान असो देणें, वरकड वर्तमान तर राजश्री फत्तेसिंग भोंसलेदादा व राजश्री श्रीनिवास पंडित प्रतिनिधि आले. काल त्रयोदशी मंदवारीं त्याणीं स्वामींचें दर्शन घेतले पौर्णिमा जाहल्यावर तृतिय गुरुवारी स्वामीस करविराहून निघावयास मुहूर्त आहे या मुहूर्ते स्वामी तीर्थरूप राजश्री आबासाहेब याच्या दर्शनास सातारियास जात आहेत हें वर्तमान तुह्मांस कळावें ह्मणून लिहिलें असे. मागाहून तुह्मीं आणखी प्यादे पाठविले तेहि पावले वरकड उभयतां मशारनिले तुह्मांस लिहितील त्यावरून कळेल. जाणिजे. बहुत लिहिणे तर तुह्मी सुज्ञ असा.
                          मर्यादेयं
                          विराजते
                                                बार        बार.