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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[५४४]                                                                    श्रीशंकर.                                                               

वेदशास्त्रसंपन्न राजमान्य राजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामीचे सेवेसी :-
सेवक दयानाथ साष्टांग नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल ता माघ शुध्द ७ सप्तमी सिरोंज जाणून स्वकीय कुशल लिहीत लेखकास आज्ञा करीत गेलें पाहिजे. विशेष. आह्मांस ठाकूर सूरजमल्लजी याणीं श्रीमंत राजश्री पंतप्रधान स्वामी याजकडे पा असे. इ. इ.इ.

[५४५]                                                                     श्री.                                                                

विनंति. राजा कोतवाल याची अवकृपा आहे. भेटीस चार मास जात नाहीं. जाती फिरली आहे. कांही बाकी राहिली नाहीं. पुरती फजिती आहे ते लिहितां येत नाहीं. कळलें पाहिजे. कऱ्हाडे मराठयांचा द्वेष बहुत जाला. याचा परिणाम भगवान कसा लावील तें न कळें. सर्वा लोकांनी बदनाम केलें. चलनामुळें जालें. नारायणभट पटवर्धन शेजारी केशव दीक्षितांचा पुत्र याणें सोमपूर्वक आधान केलें. तेथें कोणी गेलें नाहीं. दोन चितपावन गेलें. तसेच रामचंद्र दीक्षित टकले यांणी सोमपूर्वक आधान घेतलें. त्रिलोचनी तेथेंही जातात. कलह लागला, हे तेथें ब्रह्मत्व आहे. निमित्त जात नाहीं. श्रावण शु॥ १० चे दिवशी यज्ञप्रारंभ आहे. घरी ब्राह्मणभोजन कांही चालतें. कळले पाहिजे. हे विनंति.