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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[५४०]                                                                     श्री.                                                                

वेदशास्त्रसंपन्न राजमान्य राजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामीचे सेवेसी :-
विद्यार्थी बाळाजी बाजीराव प्रधान नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल जाणोन स्वकीय कुशल लिहीत जावें. यानंतर पत्र पाठविलें तें प्रविष्ट जाहालें. तुमच्या लिहिल्याप्रमाणें नवाबास व खानास पत्रें पाठविली आहेत. व राजश्री बगाजी यादवासही सांगितलें असे. तेथें गेलियावरी काय करितील. कुशलार्थ लिहीत असावा. तेथें कालगतीनें दु:शकुनादिक एक दोन जाहाली. पुढें ईश्वरइच्छा प्रमाण! तथापि आपले आशीर्वादें श्रीकृपेनें सर्व विघ्नें परिहार होतील. कळावें ह्मणून लिहिलें असें. हे विनंति.

 

 

[५४१]                                                                     श्री.                                                                

स्वामीचे सेवेसी. विद्यार्थी अंताजी अप्पाजी कृतानेक साष्टांग नमस्कार विनंति येथील क्षेम जाणून स्वकीय लेखन केलें पाहिजे. विशेष. श्रीमंत राजश्री सुभेदार याणी आह्मांस पत्र नगरच्या मुकामीहून लिहिलें तें शुक्रवारी संध्याकाळीं पावलें. पुण्यांतील वर्तमान लिहिलें होतें. पत्रीही लिहिलें होतें की साताऱ्यास वर्तमान आपणापाशीं पावतें करणें. त्यास, गुरुवारी वर्तमान शहराकडून संध्याकाळी आह्मांस आलें. शुक्रवारी तर चहूंकडे जालें. आपणांस साकल्य कळलेंच असेल, ह्मणून ल्याहावयास अनमान केला. त्यामध्यें वर्तमान हर्षाचें कोणतें तें कळलें असेल, ह्मणून लिहिलें नाहीं. श्रुत व्हावें. हे विज्ञापना.