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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

 [२५०]                                                                       श्री.                                                                        ९ आक्टोबर १७३१.

श्रीमत् सकल तीर्थस्वरूप श्री परमहंसबावा स्वामी वडिलाचे सेवेसी :-
अपत्यें सेखोजी आंगरे सरखेल कृतानेक साष्टांग दंडवत प्रणाम विनंति उपरी येथील कुशल आश्विन बहुल पंचमी भृगुवासरपर्यंत स्वामीचे कृपाकटाक्षवीक्षणें वर्धिष्णु जाणून आशीर्वादपत्र पाठवून अपत्यांचा सांभाळ करावया अविस्मर असिले पाहिजे. विशेष आशीर्वादपत्र पाठविले तें प्रविष्ट होऊन सविस्तर अवगत जाहालें व आपले कृपेचा अर्थ राजश्री रघुनाथजी यांणी निवेदिला. तेसमयीं आनंदातिशय जाहला तो श्री जाणें. पत्री काय लेहूं ? सर्वप्रकारें स्वामी वडील आहेत. वरकड निराळा पुरवणींत लिहिलें आहे, त्यावरून अवगत होईल. बहुत काय लिहिणें ? कृपा निरंतर वर्धमान केली पाहिजे. हे विनंति.