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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड वीसावा (शिवकालीन घराणी)

लेखांक १८९                                                                  श्रीशंकर                                                        १६४४ आषाढ वद्य ९                               
तालीक

श्रीमत्परमहंसादियथोक्ताबिरदाकित श्रीगेरीसिंव्हांसनाधिस्वर 
श्रीमत्छंकराच्यार्यान्वयसंज्यात अभिनव श्रीविद्यानरसींहभारतीस्वामी

.2 1 सकलगुणालंकरण हरिगुरुभक्तपरायण राजमान्य राजश्री समस्त ब्रह्मवृंद व ज्योतिसी व उपाध्ये व धर्माधिकारी व आश्रित व राजकीय ग्रहस्त व मुद्राधारी व देशाधिकारी व देशकुलकर्णी व ग्रामस्त कुलकर्णी वास्तव्य क्षेत्र करवीर व सदलगे व कुरुंदवाड व प्रा। कागल व इत्यादिक क्षेत्रवासी परमभक्तोतम याप्रति आसीर्वाद उपरी वेदमूर्ति सदासिवभट बिन जायभट ज्योतिसी मौजे पटण-कोडोली याच पित्रीवे भीमभट ज्योतीसी मौजे वसगडकर काळवसे देवाज्ञा जाहाली याजवरी त्याची स्त्री आपल माहेरी मायबापापासी होती त्यास प्राक्तनसंस्कार कालगतीने जटिल गोसावी याच यातील प्रवेशून तद्वत भ्रस्ट जाहाली या लांछनास्तव ब्रह्मकर्म लौप्य होते यऐस चितात अनुताप धरून ते भ्रस्ट बाइको व सदासीवभट बिन जायभट ज्ञातीसमवेत आह्मापासी मठ करवीर क्षेत्रासी आले त्यावरून त्या बायकोचा शोध करिता प्रस्तुत तिच दायाद भ्रस्टत्वाचा विचार सागत होत ते प्रतक्षे अवलोकन केलियावरून तीस त्रिवार पुसिली परंतु ते मागती आपल्या यातील रिघाव्या मान्य नाही ऐस कृतनिस्चय तीस विचारोन ते बाईकोचा सदासिव भटानी घटसपोट करून शास्त्रनिर्णय विधियुक्त त्यागविधी कर्म सपादऊन तीर्थप्रसाद देऊन पक्तिपावन करून सुध केले असती तरी सदासिवभट बिन जायभट व याच समस्त दायाद याचे ग्रही अनोदकससर्ग करीत जाणे सुज्ञाप्रती विशेश काय लिहिणे शके १६४४ वर्षे शुभक्रतनाम संवत्छरे अंशाड बहुळ नवमी भौमवासरे उर्फ छ २२ माहे रमजान मोर्तब सूद