Deprecated: Required parameter $article follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $helper follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $method follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ १३५ ]                                    श्री.                                          २० जून १७३२.

स्वस्तिश्री राज्याभिषेक शके ५९ परिधावी नाम संवत्सरे आषाढ शुद्ध नवमी सौम्यवासरे क्षत्रियकुलावतंस श्रीराजा शभुछत्रपति स्वामी यांणीं समस्तराजकार्यधुरंधर विश्वासनिधि राजमान्य राजश्री भगवंतराव अमात्य हुकुमतपन्हा यासी आज्ञा केली ऐसी जेः -

तुह्मीं स्वामिसन्निध यावें कितेक विचारें मनसुबा होणें तो व्हावा लागतो. या दिवसामध्यें स्वामीनिराळें तुह्मीं रहावें ऐसें नाहीं. येविशी पहिलेही तुह्मांस लेहून व सांगोन पाठविलें त्यास राजश्री बाळाजी महादेव व राजश्री नारो हणमंत यांस पाठवून द्यावें ह्मणून लिहिलें. उभयतांनी हे विनंति केली त्यावरून अगत्यरूप तुह्मी स्वार होऊन यावे येविशींची आज्ञा उभयता जवळ करून पाठविले आहेत. सागतील त्यावरून कळेल. तरी तुह्मीं याउपरि कोणेविशी विचारांतर न करतां स्वार होऊन स्वामीचे दर्शनास येणें. याउपरि विलंब न करणें. व फोंड सांवतानें बोलवण घोणसरीचा डोंगर बांधावयास जमाव पाठविला, त्यास तुह्मीं जमाव पाठवून डोंगर धरिला, सांवताचेही लोक डोगराखाले नजीक आहेत, वरचेवरी उपराळा व्हावा लागतो, ह्मणून लिहिलें तें विदित जाले. सिताबीनें तुह्मीं जमाव पाठवून डोंगर धरिला, उत्तम गोष्ट केली. सांवताचा जमाव नजीक आहे यास्तव डोगर मजबुतीनें राखावा लागतो त्यास तेथें लोक पाठविले आहेत, त्यांची बेगमी करून त्याणीं आणविलेप्रमाणें सामान पाठविणें . रांगणा, भूधरगड व बाळाजी देसाई व सरवडे आदिकरून गांवोगावचा जमाव पत्रें पाठवून रवाना करविला आहे सावताकडील जमाव नामोहरम होऊन गेल्याउपरी, डोगर धरिला आहे त्याचा विचार विचारेंकरून स्वामी करणें तो करतील खडावा जोड व वहाणाचे जुते पा। ते हुजूर प्रविष्ट जाहले. बहुत लिहिणें तरी तुह्मी सुज्ञ असा. 

                                                                                                                  मर्यादेयं
                                                                                                                  विराजते.
                                                      बार.