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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

वीसा ठायीं च लोह निर्वचैल।।
२२॥ लोह होईल॥ पूर्ण यश पाविजैल ॥
हातीयेरें सांडिती।। पल होईल॥
अदित्यवारी॥ शनिवारी ।।

वृषभ, कन्या, मकर, मिथुन, तूल, कुंभ हे खोचिति ॥
सोमवारि, बृहस्पतवारि मिथुन, तूळ कुंभा पडतीं ॥
कर्क, वृश्चिक, मीन हे खोंचती॥
मंगळवारीं॥
शुक्रवारी॥
कर्क, वृश्चिक, मीनु, धनु, सिंह, मेषु हे सा ६ राशी मरती ॥
वृषभकन्यामकरु हे खोंचती।।
बुधवारिं वृषभ, कन्या, मकर पडती॥
मिथुन, तूल, कुंभ हे खोंचती।।
तिथिवारु जे दिशे यात्रा किजे ।।
ते दिशा येकत्र किजे।।
तिंहि भागु दिजे ॥
उरे शेष तो धृवक रांशींचें जीव-नक्षत्र।
२ ने गुणिजे ॥ ध्रुवक मेळविजे॥
तिंहिं भागु दिजे॥ शेष उरे तो ग्रहो-जाणिजे ।।
जयाचे राशीवरि बुध, गुरु बैसती तिये राशिचेयांकरवी।
यात्रा कर्विजे। दुर्गयात्रा बुध जया विये॥
राशीवरी बैसे।। तया कर्वि कर्विजे।।
आउ। नि। पू । वा । द। ई । प।
सूर्योदयाचीये ठाउनु येणें क्रमें चौ घडिये भ्रमण जाणावें।।
जयाचिये पाठि पडे तो जयो पावे ॥६॥
इति श्रीभूपाळवल्लभः समाप्तिमुपागमत्॥