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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड आठवा (१६४९-१८१७)

[ ६७ ]                                            श्री.                                    १४ ऑक्टोबर १७१०

छ मा। अनाम देशमुख व देशकुलकर्णी का। ठाण सुभा प्रा। पनाळे यांसीः-
रामचंद्र नीलकंठ अमात्य हुकमतपन्हा सु।। इहिदे अशर मया अलफ वेदमुर्ती राजश्री बाळंभट बिन विश्वनाथभट, जोतिषी उपनांव वडणगेकर, सूत्र आश्वलायन, गोत्र गार्ग्य, हालीं वास्तव्य कसबे कोल्हापूर हे बहुत थोर, योग्य, शिष्ट, जोतिष विद्येंत निपुण, सिद्धांतावगत आहेत जोशी यासा कुडालकर सावंत याणें राजश्री छत्रपती स्वामीच्यापासी दुर्बुद्धि धरून दुष्टाचरण आरंभिलें होतें त्यास नतिज्या पावायानिमित्य आंगेज केला ते प्रसगीं याणीं मुहूर्त पाहोन दिला त्या मुहूर्ते वाडीवरी चालोन घेऊन वाडी घेतलीं. फत्ते झाली. यास्तव यावरी संतोषी होऊन यास नूतन इनाम कार्यात मा।र पेll विसी पांडाच्या बिधियानें अव्वल तुमसीम तिन्ही प्रतीची जमीन चावर एक बितपशीलः- 

मौजे वडणग अर्धा चावर ०ll०
मौजे भुये तीस बिघे ०l०
मौजे निगवे तीस बिघे ०l०

येणेप्रमाणे एक चालू सदर्हूप्रमाणें जमीन दिली आहे यापो। एक तक्षिमा किर्दी व तीन तक्षिमा पडी, कुलबाब, कुलकानू, हालीपट्टी, व पेस्तरपट्टी सहित खेरीज हकदार इनामदार करून, दिल्ही असे तरी सदर्हू जागा मोजून चतु सीमा करून देऊन यास व याचे पुत्रपौत्रीं वंशपरंपरेस उत्तरोत्तर चालवीत जाणें नव्या पत्राचा आक्षेप न करणें. या पत्राची तालीक लिहून असलपत्र परतून भोगवाटियास वे ll जवळ देणे सदर्हू जागा इनाम देविली आहे ये विषयी अलाहिदा देशाधिकारी याच्या नावे सादर आहे त्याप्रमाणें ते दुमाले करून देऊन चालवितील. जाणिजे छ २ रमजान. निदेश समक्ष.

                                                                                                              बार.