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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[४९७]                                                                         श्री.                                                                  २४ सप्टेंबर १७५७.

पौ अधिक वद्य ४
शनवार शके १६७९.

वेदशास्त्रसंपन्न राजमान्य राजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामी गोसावी यांसी :-
विद्यार्थी बाळाजी बाजीराव प्रधान नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल जाणून स्वकीय कुशल लिहीत जावें. यानंतर राजश्री बगाजी यादव पुत्राचे दु:खामुळें फार यागी जाहाले असत. तरी तुह्मी त्याचें समाधान हरप्रकारें करून यागीपणा त्याचा दूर होऊन, ते येथें येत ते गोष्ट करावी. पहिले या मजकुराचें पत्र व मशारनिलेचें पत्र पाठविलें त्याचें उत्तरही आलें नाहीं. तर जरूर एक वेळ बगाजीपंतास येथवर येत तें हर तजविजेनें करावें. छ. ९ मोहरम. हे विनंति.