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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[४६६]                                                                        श्री.                                                            

वेदशास्त्रसंपन्न राजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामीचे सेवेसी:-
विद्यार्थी बाळाजी बाजीराव प्रधान साष्टांग नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल जाणोन स्वकीय लिहीत जाणें. विशेष पत्र पाठविलें तें प्रविष्ट जाहालें. वराडच्या गांवाचे कमाविशीचा अर्थ लिहिला. तरी हे साल मख्तियाचेंच आहे. पेस्तर सालचें बोलणें तें पेस्तर सालीं बोलावें. बहुत काय लिहिणें. हे विनंति.



[४६७]                                                                        श्री.                                                            १९ डिसेंबर १७५५.

पौ पौष शुध्द ११ सोमवार
शके १६७७ युवानाम.

वेदशास्त्रसंपन्न राजमान्य राजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामीचे सेवेसी :-
चरणरज शिवभट साठे साष्टांग नमस्कार विनंति उपरि. त्या प्रांतींचे तपशीलवार वर्तमान राजकीय लिहिणें. आपण श्रीहून स्वार जालों तें छपारा नजीक रामटेक मार्गेश्वर शुध्द १५ गुरुवारीं पावलों. दो रोजांत नागपुरा नवमहाबाज याजकडील हालसालची मामलत विल्हे लाऊन, हस्ती व जवाहीर श्रीमंत जानोजी बावा व श्रीमंत त्रिवर्ग बंधू यांसहि घेऊन समागमें त्यांजकडील भला माणूस मातपुरुषीचीं वस्त्रें व बहुमान देवायास आला तोहि समागमें असे. यजमान या प्रांतीं आलिया त्यांसहि सत्वर विदा करून देऊं. आपणास श्रुत होय. हे विनंति.