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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[१२९]                                                                      श्री.                                                     २ डिसेंबर १७५४.     


अखंडित लक्ष्मी अलंकृत राजमान्य राजश्री जगंनाथ चिमणाजी गोसावी याशीं. सेवक बाळाजी बाजीराव प्रधान नमस्कार, सु॥ खंमस खमसेन मया व अल्लफ. श्री परशराम देवालय चिपळूण याजवर चुना घालणें होता तेविशीची विवचना भार्गवराम बावा करीत असतां त्याचा काल जाला. ऐशियास देवालयांस चुना घालावयास पैका किती लागेल त्यांची वरावर्द करून शाहणे कारकून यासहित हुजूर पाठवून देणें. दिरंग न लावणे. जाणिजे. छ १७ सफर. आज्ञा प्रमाण.




[१३०]                                                               श्रीभार्गवराम.      

श्रीमत् परमहंस स्वामी यांहीं, मन निर्मल गंगाजल सौभाग्यादिसंपन्न वज्रचुडेमंडित मातोश्री सगुणाबाई याप्रती आज्ञा येशीजे :- बाई ! तुह्मी माझे काळजाचें काळीज. ह्मणून तुह्मांस पोर पाठविली आहे. लहानाची थोर करून सेवा घ्यावी. वरकड आहे तें मजमागें तुमचेच आहे. सूज्ञाप्रति विशेष काय लिहिणें. हे आज्ञा.