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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड पंधरावा (शिवकालीन घराणी)

                                                                                   लेखांक ५३

                                                                                                                                                    १६२४/१६२५                                                           

तकरीर कर्दे बतारीख छ माहे रजब सु॥ सन १११२ बे॥ महादजी जगदळे वा। सुलतानजी जगदळे देशमुख प्रा। मसूर यानी तकरीर केली ऐजी जे आपला वडील जगदेवराऊ जगदळे त्यास लेक चौघे वडील रामोजी त्याहून दुसरा बाबाजी तिसरा दयाजी चौथा विठोजी ऐसे चौघे लेक एका ठाई असोन परगणे कराडचे व प्रा। मसूरची देशमुखी करीत होते व का। मसूरची पटेलगी व शिरवडची पाटिलगी व आउध का। आकीबची पाटिलगी ऐसे करीत असता भावाभावाच्या वाटणिला जाहालिया ते समयी बाबाजी जगदळे आपले वडील यास प्रा। मसूरचे देहे ५७ व का। मसूरची पाटिलगी वाटणीस आली मसूरची देसमुखी व पाटिलगी वडील खात आले त्याचे लेक कुमाजी आपला पणजा अलीअदशाहाचे वेळेस खात आला रामोजी व दयाजी व विठोजी याचे वाटणीस पा। कराडची देसमुखी व शिरवडी व आबिकची पाटिलगी व देसमुखी आली ती ते करीत होते ते वख्ती मेघोजी थोरात पातशाही वजीर होता त्यास प्रा। मजकूर मोकासा होता ते बख्ती प्रा। मजकूरची रस्त होन साडे च्यार हजार जमा रामोजी व दयाजीचे घरी जाहाली तो रामोजी व दयाजी देसमुख प्रा। मजकुरात गेले होते माघे खावद नाही ऐसे देखोन चोरानी दरवडा घालोन पैका रस्त नेली तो रामोजी व दयाजी प्रा। मजकुराहून आलेयावरी मोकासाई यानी नैब प्रा। मजकुरी होता त्यास सामील करून रामोजी व दयाजीस कैद करून रस्तेचा तगादा लाविला मुनसिफी मनास आणिता तुह्मीं च रस्त तोडाविली ह्मणऊन दोघास नेऊन जिवे मारिले विठोजी पळोन मसुरास आला थोरातानी प्रा। मजमकूरची देसमुखी नैबची आगत (अगत्य) पातशाहास गैरवाका मालूम करून जारा------

(अपूर्ण)